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उदयन और वासवदत्ता दोनों काफी देर तक एक-दूसरे को एकटक निहारते रहे।
सुन्दरी, हमारे बीच भ्रांति का यह पर्दा तुम्हारे
आर्य, उनको जो पिताजी ने ही डाला है न?
भय था वही तो हो
गया न
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धीरे-धीरे दोनों में एक-दूसरे का आकर्षण बढ़ता गया और एक दिन उदयन ने कह दिया
आर्य, पिताश्री हमें ठीक है, तुम एक । कभी मिलने नहीं देंगे, तीव्रगामिनी हथिनी की इसलिए आपको ही कुछ व्यवस्था कसो, बाकी
करना होगा। सब मैं करता हूँ।
पाहतानाताना(सुन्दरी, मन मिल चुका है तो तन
की दूरी कितने दिन रहेगी"?
कुछ दिन बाद वसन्तक भेष बदलकर उदयन से मिलने आया। वसन्तक तुम यहाँ? राजन् ! महामंत्री यौगंधरायण वसन्तक ! राजकुमारी
भी आये हैं। वे आपको ले वासवदत्ता भी मेरे साथ | जाने की योजना बना रहे हैं। कौशाम्बी चलेगी।
महामंत्री से कहो,
तैयारी करें।
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