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________________ हाँ, इसलिए तो मैं उसे हर प्रकार से प्रसन्न रखना चाहता हूँ। तुम उसे गंधर्वविद्या सिखाओ। बस, यही मेरा आग्रह है / उदयन और वासवदत्ता हैं! वत्सराज और कोढ़ी ? ठीक है मौसाजी, जैसी आपकी आज्ञा । बेटी ! भाग्य भी कभी-कभी कैस मजाक करता है। भारत का सर्वश्रेष्ठ गंधर्वविद्या प्रवीण, शरीर में कोढ़ी है। कुष्ठ रोग से उसका गला गल रहा है। उदयन से स्वीकृति पाकर चण्डप्रद्योत वासवदत्ता के पास आया। पुत्री ! तेरे गायन शिक्षण की सब व्यवस्था हो गई है। वसन्तराज उदयन यहाँ आ गये हैं। परन्तु परन्तु क्या पिताश्री ? 20 हाँ, पुत्री ! यही तो भाग्य की विडम्बना है। भी स्त्री के सामने जाने में उसे बड़ी शर्म आती है। इसलिए मैंने तुम दोनों के बीच एक काला पर्दा उलवा दिया है। ताकि उसे संकोच नहीं होगा और तुम भी कोढ़ी से बचकर रह सकोगी। И दूसरे दिन वासवदत्ता वीणा वादन सीखने लगी। पर्दे के पीछे बैठा उदयन उसे भिन्न-भिन्न प्रकार के राग सिखाता रहा। प्रतिदिन एक पहर तक यह शिक्षण चलता था।
SR No.006280
Book TitleUdayan Vasavdatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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