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________________ दूहा सार॥ १ पुन री करणी परवड़ी, श्री जिन आगम संध। भीक्खू तास भली परै, परगट करी प्रबंध। २ निर्जरा री करणी निमल, जिन आज्ञा मैं जाण। ते सुभ जोग निरवद त्यां, पुन्य बंध पहिछांण॥ ३ विरूइ' आज्ञा बारली, सावज्ज करणी सोय। पाप बंध तेहथी प्रकट, जिण थी पुन म सोय।। ४ सुद्ध बहिरावै साध नैं, कही निर्जरा एकंत। भगवती अष्टम शतक भल, छठे उदेश सुचिंत।। ५ सुभ लांबौ आउ सखर, तसुं बंध तीन प्रकार। हिंस्या झूठ सेवै नहीं, संत भणी दै ६ वहिरावै वंदणा करी, आहार मनोज्ञ उदार। 'भगवती पंचम शतक भल' छठे उदेश'३ विचार।। ७ वंदणा नां फळ वर्णव्या, नीच गोत खय न्हास। ऊंच गोत नौं बंध इम, 'उत्तराधेन'५ उजास।। ८ व्यावच कीधां बंध वलि, तीर्थंकर पुन तांम। गुणतीसम ज्ञानी कह्यौ 'उत्तराध्ययने आंम६॥ ९ इत्यादिक आज्ञा तिहां, पुन नों . बंध पिछांण। समय सोध भीक्खू सखर, आखी ऊजम आण।। ढाळ : १३ ___ (पुन्य नीपजै सुभ जोग सू रे लाल) १ दाखी व्यावच दश प्रकार नी रे लाल, 'ठाणांग दशमै ठांण" हो। भविकजन! प्रगट दसोइ साध पिछांणजो रे लाल, जिण सूं पुन बंध निर्जरा जांण हो । स्वामी सरधा दिखाई श्री जिन वयण सूं रे लाल।। ध्रुवपद ।। १. बुरी ४. नाश। २. भगवती. शतक ८ उ.६ सूत्र २४५। ५. उत्तराध्ययन. अ. २९ सूत्र १०। ३. भगवती. शतक ५ उ. ६ सूत्र १२७। ६. उत्तराध्ययन. अ. २९ सूत्र ४३। ७. स्थानांग स्था. १० सूत्र १७। भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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