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दूहा १. तुरत ताव तब ऊतर्यो, विध सूं कियौ विचार।
हिव साचौ मत आदरी, करूं आतम तणौ उधार।। २. रखे झूठ लागैला मो भणी, तौ करणी पकी पिछांण।
इम चिंतव' सिद्धत नै, वाच्या अधिक सुजाण।। ३. जो साचां नैं झूठा कहूं, तौ परभव रै माय। ___जीभ पामणी दोहिली, विविधपणे दुख पाय॥ ४. पख राखी द्रव्य गुरु भणी, जो कहूं साचा सोय।।
तौ पिण परभव नै विषै, काम कठिण अति होय॥ ५. औ दूधारौ खांडौ अछ, एहवी मन मैं धार।
दोय-दोय वार सूत्रां भणी, वाच्या धर अति प्यार। ६. सूत्र विविध निरणय करी, गाढ़ी मन मैं धार।
समकत' चारित बिहुं नहीं, एहवौ कीयौ विचार॥ ७. भायां नै भीक्खू कहै", थे तौ साचा सोय। ___म्हे झूठा गुरु सूं मिली, शुद्ध मग लेसां जोय॥ ८. भाया सुण हरख्या घणां, बोल्या एहवी वाय।
अब म्हारी संका मिटी, दिल मैं रही न काय॥ ९. प्रतीत आप तणी हुंती, जिसी म्हारा मन माय। तिसी दिखाड़ी तुरत ही, इम कहि हरखत थाय।।
ढाळ : ३ - (राणी भाखै सुण रे सूड़ा!) १. राजनगर थी कीयौ विहार, चौमासो उतरीयां सार।
आवै मुरधर देश मझार रे।। मन प्यारा,
भीक्खू जश रसायण सुणिजै॥ध्रुवपद।। २. साधां नै सहू बात सुणाई, सरधा-किरिया ओळखाई।
____ ते पिण' हरख्या मन माही रे।। मन प्यारा, १. ऐसा न हो कि'।
५. सम्यक्त (क)। २. चिंतवी (क)।
६. किया (क)। ३. वांच्या (क)।
७. कह्यौ (क)। ४.प्राप्त होनी।
८. पिण सुण। (क)।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ३