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________________ ७ ब्रह्मचारी कहै - श्री पूज नै रे, पिंडत मरण करौ भलौ रे, ८ वले पूज वाणी इण विध वदै रे, इरिया भाषा नै एषणा रे , ९ भंड उपगरण लेतां - मेलतां रे, जैणा कीज्यो जुगत सू रे, १० सिष - सिषणी उपगरण ऊपरे रे, ममता - मोह कियां थकां रे, ११ पुद्गल ममता कोई मत करो रे, सुमता सदाई राखजो रे, १२ भगतवंत भारमलजी रे, विरहो पड़ै दरसण तणो रे, १३ थे संजम अराध्यां सुर होवसो रे, महाविदेह खेतर मझे रे, २९२ आप जावौ सुध गीत माय । हूं मोह आणूं किण न्याय? भविक. थे आराधजो आचार। लोपज्यो मती लिगार ।। भविक. तांम। परठतां - पूजतां ज्यूं सीझै ममता कर्म इण आतम कांम ॥ म कीज्यौ तणो बंध होय ॥ भविक. कोय। भविक. ममता थी दुख थाय । ज्यूं वेगा जाओ मुगत गढ़ माय ॥ भविक. बोलै एहवी वाय । हिवै पूज बोलै सुखदाय॥ भविक. मुज थकी मोटा त्यांरा देखजो दरसण दीदार || भविक. अणगार । भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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