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© जैन विश्व भारती
प्रकाशक: जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान)
संस्करण : १९९४
तेरापंथ प्राणवान् संघ है। आचार्य भिक्षु ने इसका प्रवर्तन वि.सं. १८१७ आषाढ़ी पूर्णिमा को केलवा में किया था। उस घड़ी और उस पल का कोई ऐसा योग था कि उस दिन से तेरापंथ गति करता गया। साधुओं की संख्या कभी घटी, कभी बढ़ी, पर इसकी मूलभूत भित्ति सुदृढ़ रही। परम्परा में होने वाले आचार्य इसको गतिशील बनाते रहे, इसकी अनुशासना को प्रायोगिक करते हुए साधना का अवसर देते रहे। उसी प्रकार साधु-साध्वियों ने इसे सींचा, पल्लवित, पुष्पित और फलित किया। आज भी यह शत-शाखी वृक्ष कल्पतरु के रूप में अनेक मुमुक्षुओं की इच्छा-पूर्ति का साधन बना हुआ है। जयाचार्य जीवनी-लेखन की कला में सिद्ध-हस्त थे। उन्होंने आचार्य भिक्षु और ऋषिराय का जीवन-वृत्त लिखा। "भिक्षु जश रसायण" उनकी अमर कृति है। इस ग्रन्थ में उन्होंने आचार्य भिक्षु का ऐसा सजीव वर्णन किया है कि पाठक को आचार्य भिक्षु के साक्षात्कार की-सी अनुभूति होने लग जाती है। आचार्य भिक्षु और जयाचार्य दोनों एकात्म थे ।
मूल्य : ७५ रुपये
मुद्रक : जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि.
जयपुर