SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूहा १ संथारौ कीधौ सखर, सखर स्वाम श्रीकार। सूरपणें सीझ्यौ सखर, सखर सुजश संसार॥ २ साधां तन वोसिरायनै, चिउं लोगस चित धार। कियौ तदा सुद्ध काउसग, अरु तिण दिन तज आहार॥ ३ पूज तणौ विरहौ पड्यौ, कठिण अधिक कहिवाय। याद किया अरिहंत नैं, सम-भावे सुख पाय॥ ४ अहो अथिर संसार ए, संजोग जठै विजोगा-... पूज सरीखा पुरुष था, पौहता आज़: परलोग। ५ देख्या भीखू दिल करी,- वारु- - - - निसुणी वांण। याद करै ते अति घणां, जन-गुण-ग्राही जांण॥ ६ चिउं तीर्थ आवी मिल्या, स्वाम तणे संथार। मास भाद्रवा .... मझै, अचर्य-~~~-ए-------अधिकारी .७ प्रबल पुन्य ना पोरसा, प्रबल गुणागर जांण। पूज हुंता प्रगट पण, पर-भव कियौ पयांण।। ढाळ : ६२ (आज आनंदा रे) १ स्वाम संथारौ सीझीयां गुणधारी रे, मैहल्या मांहढी रै माया । स्वाम सुखकारी रे। तेरै खण्डी मांहढी तणी गुणधारी रे, महिमा कीधी अथाय। स्वाम सुखकारी रे॥ २ रुपीया सइकडां लगावीया गुणधारी रे अनेक उछाल्या लार। भीक्खु ऋष भारी रे। ए सावज किरतब संसार ना गुणधारी रे, तिण मैं नहीं तंत सार। स्वाम. ३ वात हुई जिसी वरणवै गुणधारी रे, समभावे . सुविचार॥ स्वाम. . तिण माहै पाप म तांणजो गुणधारी रे, दंभ तजी दिल धार। स्वाम. ४ अति घन जन-वंद आवीया गुणधारी रे, आदरै संस अनेक। स्वाम. विविध वैराग वधावता गुणधारी रे, वारू आंण विवेक॥ स्वाम. २०६ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy