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१७ इम तंतू अति राख रे, झूठ बोली वले जांण नैं। __ सुध नहिं संजम साख रे, नीत चरण पाळण तणी॥ १८ च्यारूं ते पहिछांन रे, 'चैना भेळी पंचमी। झट पांचू नैं जाणं रे, छोड़ी चंडावळ मझै॥
(खिमावंत जोय भगवंत रौ रे ज्ञान) १९ मैणांजी15 मोटी सती जी, वासी पुर का विचार।
स्वाम कनै संजम लीयौ जी, छांडी निज भरतार॥ खिमावंत. २० पढी-भणी पंडित थई जी, बहु सुत्रां नी रे जाण। साठे संथारौ करे जी, कीधौ जन्म किल्यांण। खिमावंत.
सोरठा
२१ 'धनु' 'केलीजी' धार रे, 'रतू18' 'नंदूजी' वली। मांढा गांम मझार रे, छोड़ी यां च्यारां भणी॥
(खिमावंत जोय भगवंत रौ रे ज्ञान)
२२ 'रंगूजी' रळियामणी जी, श्रीजीदुवारा ना सार। ___पोरवाल प्रगटपणे जी, संजम लियौ सुखकार।। खिमावंत. २३ अड़तीसै व्रत आदऱ्या जी, स्वाम खेतसी रे साथ।
सरियारी चलता रह्या जी, वारु भणी विख्यात।। खिमावंत. २४ 'सदांजी21' मोटी सती जी, तलेसरा · तंत सार।
श्रीजीदुवारा ना सही जी, सखर कियौ संथार।। खिमावंत. २५ सुत बहु तज संजम ळियौ जी, कंटाळ्या ना कहिवाय। ___अणसण लोटोती मझै जी, 'फुलांजी2' सुखदाय॥ खिमावंत. २६ उत्तम 'अमरां3' आर्यां जी, स्वाम तणै उपगार।
जीतब जनम सुधारीयौ जी, सखरौ कर संथार॥ खिमावंत. २७ ढाळ एक पचासमी जी, भीक्खु नैं गण भाळ।
बडी-बडी सतियां हुई जी, वारु गण सुविशाल॥ खिमावंत.
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भिक्खु जश रसायण