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________________ . ८३ सुगुरा साप नैं दूध पायां थकां रेलाल, ऊ करै पाछौ उपगार रे सुगुण नर। तिण नैं धन देई धनवंत करै रे लाल, वले दीठां हुवै हरख अपार रे सुगुण नर।। __ भाव सुणो सुविनीत रा रे लाल॥ ८४ केइ आप छांदै फिरै एकला रे लाल, पिण सरल परिणामी सुद्ध रीत रे सुगुण नर। तिण नैं समझाय समकत चारित दीयौ रे लाल, ते आज्ञा पाकै रूड़ी रीत रे सुगुण नर॥ भाव. ८५ तिण रै समकत नैं संजम बिहुं रे लाल, रुचिया अभ्यंतर सार रे सुगुण नर। चलावै ज्यूं चालै छादौ रूंध नैं रे लाल, ज्यां सूं करै पाछौ उपगार रे सुगुण नर। भाव. ८६ मोटो उपगार त्यांरौ किम वीसरै रेलाल, सूंपै सर्व देही त्यारै काज रे सुगुण नर। त्यांरौ दर्शण देख हरखत हुवै रेलाल, सर्व काम मैं धोरी ज्यूं समाज रे सुगुण नर॥भाव. ८७ वले गामां-नगरां फिरतां थकां रे लाल, सदा-काळ करै गुण ग्राम रे सुगुण नर। ते सुविनीत गुण-ग्राही आतमा रे लाल, त्यांनै वीर बखाण्यां तांम रे सुगुण नर॥ भाव. ८८ शिष सुविनीत नै सोभती रे लाल, ओपमा दीधी अनेक रे सुगुण नर। सूत्र-न्याय भीक्खू स्वामजी रे लाल, सांभळजो सुविसेख रे सुगुण नर॥ भाव. ८९ भद्र किल्याणकारी घोड़े चढ्यां रे लाल, असवार रै हरख आणंद रे सुगुण नर। ज्यं सीख दीयां सुविनीत नैं रे लाल, गुरु पांमै परमानंद रे सुगुण नर।। भाव. ९० सुविनीत हय देखी चाबखो रे लाल, असवार रै गमतौ चालंत रे सुगुण नर। चाबखा रूप वचन लागां बिना रे लाल, सुविनीत वर्ते चित शांत रे सुगुण नर।। भाव. ९१ अग्निहोत्री ब्राह्मण सेवै अग्नि नैं रे लाल, घृतादिक सींची करै नमस्कार रे सुगण नर। सुविनीत सेवै इम गुरु भणी रे लाल, केवळी छतौ पिण अधिकार रे सुगुण नर।। भाव. ९२ सुविनीत हय-गय नर-नारी सुखी रे लाल, सुखी देव दानव सुरीत रे सुगुण नर। ते तौ पूर्व पून्य ना प्रभाव सूं रे लाल, दीसै लोक मैं विनय सुरीत रे सुगुण नर॥ भाव. ९३ केइ पेट-भराइ सिल्प कारणे रेलाल, संसार नां गुरु कनैं सोय रे सुगुण नर। राजादिक नां कुंवर डांडादिक सहै रे लाल, करडा वचन सहै नर्म होय रे सुगुण नर॥ भाव. ९४ तौ सिद्धंत भणावै ते सतगुर तणौ रे लाल, किम लोपै विनयवंत कार रे सुगुण नर। समगत चारित्र पमावीयौ रे लाल, औ उतकष्टौ उपगार रे सुगुण नर।। भाव. ९५ धर्म रूप वृक्ष रौ विनय मूळ छै रे लाल, बीजा गुण शाखादिक सम जांण रे सुगुण नर। तिण सूंशीघ्र वृद्धि कीर्त्त-सूत्र नी रे लाल, 'दशवैकालिक नवमां रे दूजे वांण रे सुगुण नर॥ भाव. १. चाबुक। २. दशवैकालिक अ. ९ उ. २ गा. १। भिक्खु जश रसायण : ढा. ४१ १३७
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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