________________
अर्ह
प्रकाशकीय "भिक्खु जश रसायन"जयाचार्यवर की अमरकृति है। जहां एक ओर भिक्षु स्वामीजी का प्रमाणिक जीवनवृत प्रस्तुत किया है, वहीं अपने आराध्य के तत्वदर्शन को सम्यगरूपेण व्याख्यायित भी किया है। जयाचार्य का जीवन बहुआयामी था। उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुविध साहित्य का सृजन किया। उनके द्वारा रचित लगभग साढ़े तीन लाख पद्य प्रमाण साहित्य उपलब्ध हैं। राजस्थानी में किसी एक व्यक्ति द्वारा इतना साहित्य रचा गया हो यह अन्वेषण का विषय है। जयाचार्य स्वामीजी के भाष्यकार थे। स्वामी जी के समय के अनेक स्थविर मुनि जयाचार्य के शासनकाल में वर्तमान थे। अपने शिक्षा गुरु मुनि हेमराज प्रभृति संतों द्वारा प्रत्यक्षदर्शी होने के कारण स्वामी जी से सम्बन्धित पुष्ट व प्रमाणिक जानकारी जयाचार्य को मिल सकी, यह इस ग्रंथ को प्रमाणिक व महत्वपूर्ण साबित करती है। जगह-जगह पर भिक्षु दृष्टान्तों को उपस्थित कर तत्व का विवेचन, उस समय की धारणाओं, मान्यताओं एवं रूढ़ियों पर प्रकाश डालता है। बहुत सारे ऐतिहासिक तथ्यों को भी उजागर किया गया है।
श्रद्धावनत है परमाराध्य आचार्य श्री तुलसी के प्रति जिनकी सतत् प्रेरणा व मार्गदर्शन में श्रद्धेय संघ परामर्शक मुनि श्री मधुकरजी व मुनि श्री सुखलालजी के अथक श्रम से सम्यग सम्पादन का कार्य सम्पन्न हो सका। हम मुनि द्वय के प्रति आभार ज्ञापित करते हैं। ___ ग्रन्थ सर्वजन योग्य. सहज, सरल होने के कारण सुधी पाठकों को स्वाध्याय में सुगमता रहेगी-ऐसा हमारा मानना है। अध्येता इस ग्रन्थ-रत्न का अध्ययन कर अनेक तत्व-रत्नों को संजो पायेंगे - ऐसा हमारा विश्वास है।
"भिक्षु चेतना वर्ष" के बहुविध कार्यक्रमों के अन्तर्गत तेरापंथ राजस्थानी वाङ्मय की श्रृंखला में इस ग्रन्थ का प्रकाशन कर जैन विश्व भारती धन्यता का अनुभव करती है। जैन विश्व भारती
झूमरमल बैंगानी लाडनूं
मंत्री अश्विन शुक्ला-१३ दिनांक २८ अक्टूबर, १९९३
(ix)