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छह
विवेचन, मेवाड़ के राणाओं का परिचय, उस समय की सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक परिस्थितियों का आकलन बहुत ही सजीव रूप से हुआ है । आचार्य भिक्षु इस काव्य के मुख्य पात्र हैं। उनका बाल्यकाल, बालक के शरीर के अंग-उपांगों के आधार पर उनके भविष्य के जीवन का रेखाचित्र, यौवन, परिणय, पत्नी-वियोग, आचार्य रघुनाथजी के पास भागवती दीक्षाग्रहण आदि-आदि का विवरण प्राप्त है। तेरापंथ धर्मसंघ का सूत्रपात, तेरापंथ की सैद्धांतिक और पारम्परिक मान्यताएं आदि से संबंधित श्लोक बहुत ही सटीक हैं और वे सजीव चित्र प्रस्तुत करते हैं। विभिन्न अलंकारों, सूक्तियों तथा उपमाओं से संकुल यह महाकाव्य विद्यार्थी के भाषाई दृष्टिकोण को परिष्कृत और सुसंस्कृत बनाता है तथा इसमें प्रयुक्त नवीन शब्द-प्रयोग और व्याकरण विमर्श भी ज्ञानवृद्धि में सहायक बनते हैं।
एक बार महाकाव्य को देखकर आशुकवि आयुर्वेदाचार्य पंडित रघुनन्दनजी ने आचार्य तुलसी से कहा-'महाराज ! इस काव्य का प्रणयन अत्यन्त प्रशस्त, श्रुतिमधुर तथा आनन्ददायी है। मुझे प्रसन्नता इस बात की है कि मेरे पास अध्ययनरत एक. मेधावी मुनि ने इसका निर्माण किया है। यदि आप मुझे ऐसे महाकाव्य के निर्माण की आज्ञा देते तो मैं भी ऐसा ललित शब्दावलि में गुंफित महाकाव्य बना पाता या नहीं, यह सन्देहास्पद
मेवाड़ प्रदेश की सुरम्य स्थली में बागोर गांव है। पुरातत्त्वविदों ने इस गांव के परिपार्श्ववर्ती थडों की खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर इसे पांच हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन माना है। गांव के संलग्न ही किलोलें भरती 'कोठारी' नदी, चारों ओर लहलहाते खेत, आम और इमली के खड़े सैकड़ों-सैकड़ों पुरातन वृक्ष, दो-तीन किलोमीटर पर स्थित छोटी-बडी पहाडियां, यत्र-तत्र अभ्रक की खदानें और प्रदूषण मुक्त वायुमण्डल आदि बागोर की प्राकृतिक सुषमा को शतगुणित बना देते हैं। उस बागोर का अपना इतिहास है । बागोर के शासक तथा उदयपुर के महाराणा-दोनों एक ही वंश के वंशज हैं। जब कभी उदयपुर के महाराणा को गोद लेने की आवश्यकता होती तब बागोर के राजकुमार को राजगद्दी पर अभिषिक्त किया जाता था।
इसी गांव में काव्यकार मुनि नत्थमलजी का जन्म वि. सं. १९५९ वैशाख शुक्ला त्रयोदशी के दिन हुआ। आपके पिताश्री का नाम हमीरमलजी और मातुश्री का नाम 'चाही' देवी था। ये गोत्र से ओसवंशीय चपलोत थे । जब आपकी आयु ग्यारह वर्ष की थी, तब कुछेक पारिवारिक लोग अकालमृत्यु से दिवंगत हो गए। इस हृदयद्रावक घटना ने बालक नत्थमल के दिलदिमाग को झकझोर डाला। उसे संसार की यथार्थता का अवबोध हुआ और