SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ ५२. निद्रां हरत् तनुभृतां खगनादवाद्यरेतं पुनर्मधुरमाङ्गलिकं प्रभातम् । को वञ्चितो भवति शक्तियुतो यदस्मिन्, सांसारिकी स्थितिरियं यतिनामनही || इतने में ही वह मधुर मंगल प्रभात भी पक्षियों के कलरव रूप वाद्य यन्त्रों से सबकी नींद उड़ाता हुआ वहां आ पहुंचा, क्योंकि कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो समर्थ होते हुए भी इस प्रकार के उत्सव में आने से वंचित रहना चाहे ? यह एक सांसारिक स्थिति - परम्परा है । यह त्यागियों की दृष्टि से श्लाघ्य नहीं है । ५३. नो नो सरोवरजलंर्न न मेघवर्षे:, किन्त्वस्य पुण्यविभवाद् वनराजराजी । फुल्ला विहङ्गमरवालिविपञ्चिकाभि:, ' प्रेम्णा परिप्लवदलनितरां ननर्त्त ॥ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् न तो सरोवर के जल से ही और न मेघवृष्टि से ही, किन्तु इस बालक की पुण्य प्रभा से वृक्षों की श्रेणी प्रफुल्लित हो उठी और वे प्रफुल्लित वृक्ष पक्षियों के कलरव रूप वीणा को बजाते हुए तथा चञ्चल पर्णरूप हाथों प्रेमपूर्वक हिलाते हुए निरंतर नृत्य करने लगे । ५४. फुल्लारविन्दमकरन्दसुगन्धगन्धः, पीयूष सिन्धुकृत निर्मलदेह दिव्यः सर्वामयक्लमहरः वृत्तोऽनुकूलितजनः 1 कुसुमाभिवर्षी, पवनप्रचारः ॥ खिलते हुए कमलों के सुमधुर रस एवं सुरभि से सुरभित, पीयूषसिन्धु में डुबकी लगाने से निर्मल एवं शीतल तथा सब प्रकार की बीमारियों एवं थकान को दूर करने वाला, सबको प्रिय लगने वाला, ऐसा पुष्पवर्षी पवन उस समय बहने लगा । ५५. आर्हन्त्यसद्भिरपि हा परिघात्यमान, उद्घाटिताननमुखैर्नहि कोऽपि रक्षी । पास्यत्ययं ध्रुवमितीय समीरधीरो, दीपाङ्गजस्य शरणं चरणं चुचुम्ब || १. विपञ्चिका - वीणा (विपञ्ची कण्ठकूणिका - अभि० २।२०१ )
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy