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________________ १६ श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् ४५. यस्याऽङ्गभास्करपुर: किमु नो व्यवस्था, दीपाः स्वदीप्तिमतुलां तुलिताग्रभावाः । संवृत्य नजकिरणाः शरणाश्रितास्ते, स्नेहैः स्थिता मुकुलिता: क्षणदा'ऽत्ययेऽतः ॥ इस शिशु के सूर्य जैसे तेजस्वी शरीर के समक्ष हमें कौन पूछेगा, इस प्रकार आगे की बात को पहले ही सोच लेने वाले दीपक रात्री की परिसमाप्ति की वेला में अपनी अतुल दीप्ति के शरणाश्रित विस्तृत किरणों को समेट कर शांत हो गए, बुझ गए। ४६. मार्यादिकेष्वाधिपति: पुरुषोत्तमोऽयं, सीमामृते स्थितिकरान् न सहिष्यतेऽतः । एवं विभाव्य सहसाऽमरभोज्यकान्ति पान्तरे स्ववसतेस्त्वरितं प्रतस्थे । __ यह शिशु मर्यादाशील व्यक्तियों का अग्रणी तथा पुरुषोत्तम होगा, यह अव्यवस्थित स्थिति पैदा करने वालों को कभी सहन नहीं करेगा, ऐसा सोचकर ही मानो चन्द्रमा ने अपने निवास स्थान रात्री को छोड़कर शीघ्र ही द्वीपांतर की ओर प्रस्थान कर गया। ४७. नाथं विना स्वरुचिगा शिथिलान्धवृत्ता, ध्वस्ता भवन्ति इति चेतसि चिन्तयित्वा । नो रक्षयिष्यक्ति तथा विधिनोऽयमत्र, तस्माद् ग्रहा नभसि शीघ्रचलाचलास्ते ॥ जो अनाथ हैं, स्वेच्छाचारी और शिथिलाचारी हैं, अज्ञानी हैं, वे स्वत नष्ट हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों की यह नवजात शिशु रक्षा नहीं करेगा-यह मन में सोचकर आकाश में तारे अपने स्वामी चन्द्रमा के अभाव में शीघ्र ही चंचल हो उठे। ४८. स्वात्मप्रभोश्चरणचिन्हविमोचका ये ऽवश्यं विनश्वरपदा बलिना बलिष्ठाः । एवं विबोधकममुं प्रतिबोध्य तारा, लुप्तप्रभाः पतिपथं प्रतिधावमाना: ॥ १. क्षणदा -रात्री (शर्वरी क्षणदा क्षपा–अभि० २।५५) २. अमरभोज्यकान्तिः-चन्द्रमा ।
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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