SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण्यम् मुनि भिक्षु राजनगर के श्रावकों को गुरुवन्दना के लिए सहमत कर आचार्य रघुनाथजी के पास जाने के लिए प्रस्थित हए । मार्गगत कठिनाइयों के कारण वे पांचों मुनि दो भागों में विभक्त हुए । मुनि वीरभाणजी एक मुनि के साथ आचार्य रघुनाथजी के पास पहले पहुंच गए। आचार्य के द्वारा राजनगर की स्थिति के विषय में पूछने पर उन्होंने कहा- 'श्रावक क्या समझते, हम स्वयं समझ गए हैं। पूरी बात तो मुनि भिक्षु आयेंगे तब बतायेंगे।' यह सुनकर आचार्यश्री के विचारों में उथल-पुथल मच गई। मुनि भिक्ष के आने के पूर्व ही वे आग्रह-ग्रस्त हो गए। मुनि भिक्षु आए। सारा वातावरण विपरीत देखकर भाप गए कि मुनि वीरभाणजी के अधैर्य की यह परिणति है। उन्होंने गुरुवर्य को अत्यंत नम्र शब्दों में संपूर्ण वृत्तान्त की अवगति दी। परंतु आचार्य उनके प्रति और अधिक तन गए। तब मुनि भिक्षु कालक्षेप का चिन्तन कर गुरु के चरणों में प्रणत हो गए। जब सत्यग्राही श्रावकों ने यह सुना तब उन्होंने सोचा- मुनि भिक्षु ने यह क्या किया ? अंधकार ने क्या प्रकाश को निगल लिया ? ओह ! भवितव्यता को बार-बार नमन !
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy