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सातवां सर्ग
प्रतिपाद्य ! मुनि भिक्ष का शीतज्वर की असह्य वेदना से
मुक्त होता । वि. सं. १८१५ का चातुर्मास राजनगर में। शास्त्राभ्यास का विशेष उपक्रम-। सत्यनिष्ठ श्रावकों का समर्थन। सत्यपथ की अभिव्यक्ति तथा साथी मुनियों
का उत्साह। श्लोक : १०९ छन्द : पज्झटिका