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श्रीभिक्षु महाकाव्यम्
आगन्तुक मुनियों के मिथ्या उत्तरों से उन सत्यग्राही श्रावकों का मन डावांडोल नहीं हुआ । इसलिए उनको अपने विचारों में स्थिर देखकर गुरु- पक्षधर श्रावकों ने यह घोषणा कर दी कि हमारे मुनि जीत गए, जीत गए ।
५६. नियक्तिकं किमपि ते प्रतिजल्पयेयुस्तत्तथ्य तथ्यमिति सम्प्रवदन्ति केचित् । ब्रूयुः सयौक्तिकमितश्च तथापि मिथ्यामिथ्येति संकुलवचोभिरुदीरयन्ति ॥
कुछ अंधभक्त श्रावक उन अन्य श्रावकों की युक्तिसंगत बात को भी 'मिथ्या है, मिथ्या है' - ऐसा कहकर तथा अपने मुनियों की असंगत बात को भी 'तथ्यपूर्ण है, तथ्यपूर्ण है' - ऐसा कहकर कोलाहल करने लगे ।
५७. एतेऽधिकाः कुत इता गुरुतोऽपि यस्मात्, पृच्छन्ति देशविरता अपि तर्कयन्ति । श्रद्धाधनेन निधना विधिना विधूता, निर्भयन्ति बहु केचन तर्जयन्ति ॥
भी आगे बढ़े हुए हैं जो कुछ कहते - ये तो श्रद्धा
कुछ लोग कहने लगे - क्या ये गुरुओं से श्रावक होते हुए भी ऐसे तर्क-वितर्क करते हैं ? धन से दरिद्र हो चुके हैं, ये भाग्य से आहत हो गए हैं। इस प्रकार बहुत सारे लोग उन श्रावकों की भर्त्सना करने लगे और कुछ लोग उनकी तर्जना करने लगे ।
५८. एते समाज शिखराः प्रखराः पुराणाः, स्तम्भप्रभाः कुशलकर्मठ कार्यकाराः । एतेषु संघविवध विवधोपयोगा, एते दृढाः परिवृढाः परिपक्वपक्वाः ॥
इस प्रकार करने वाले वे श्रावक आचार्य प्रशंसा पाने लगे -- ये समाज के अग्रणी, प्रखर और ये आधार स्तंभ सदृश तथा कर्मठ कार्यकर्त्ता हैं । है । ये अन्यान्य भार के लिए उपयोगी तथा पके- पकाए दृढ नेता है ।
के द्वारा इन शब्दों में पीढियों के श्रावक हैं ।
संघ का भार इन्हीं पर
१. विवध: - भार ( भारे विवधवीवध - अभि० ३।२८ ) २. परिवृढः—नेता (नेता परिवृढोऽधिभूः - अभि० ३।२२ )