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वर्ण्यम् :
'भिक्षु दीक्षा ग्रहण करने कंटालिया गांव से बगडी आए। दीक्षा महोत्सव ठाट-बाट से वट वृक्ष के नीचे संपन्न हुआ। तात्त्विक थोकड़ों के साथ-साथ आगमों का अध्ययन प्रारंभ हुआ। कल्पअकल्प का अवबोध विकसित हुआ । गुरु से जिज्ञासाएं कर समाहित होने का प्रयत्न किया । आचार्य रघुनाथजी ने शिष्य भिक्ष की अनुभव वृद्धि के लिए उनको सिंघाडपति बनाकर अन्यान्य नगरों में पावस बिताने भेजा । आपने पहला पावस मेडता, दूसरा सोजत, तोसरा जेतारण और चौथा बर्दा नगर में बिताया। पांचवां चतुर्मास करने बागोर पधारे। वहां पिता-पुत्र कृष्णोजी और भारीमलजी की दीक्षा हुई। छठा चतुर्मास सादडी में सानन्द संपन्न किया।