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________________ १०० श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् १२६. निदेशं सम्प्राप्य प्रमुदितमनाः दीक्षितमति:, समारोहैः प्रौढ: परिजनकृतैः सत्कृतिमितः । स्वकण्टालीयाख्यप्रवरनगरात् तन्त्रसहितो, बगड्यां सत्पुर्या समवसृतवान् यत्र स गुरुः॥ दीक्षा की आज्ञा पाकर दीक्षार्थी भिक्षु मुदित मन से अपने परिकरों से परिवृत होकर, पूर्ण समारोह के साथ पौर जनों से सत्कृत होते हुए अपने कण्टालिया नगर से प्रस्थित होकर बगड़ी में आ पहुंचे, जहां आचार्य रुघनाथजी विराजमान थे। श्रीनाभेयजिनेन्द्रकारमकरोद् धर्मप्रतिष्ठा पुनर्यः सत्यग्रहणाग्रही सहनयैराचार्यभिक्षुर्महान् । तत्सिद्धान्तरतेन चारुरचिते श्रीनथमल्लर्षिणा, श्रीमद्भिक्षुमुनीश्वरस्यचरिते सर्गस्तृतीयोऽभवत् ॥ श्रीनथमल्लषिणा विरचिते श्रीभिक्षुमहाकाव्ये मिक्षपत्नीवियोग-दीक्षाग्रहणोत्कटतानामा तृतीयः सर्गः।
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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