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को भी पंजीकरणोपरान्त छात्रवृत्ति उपलब्ध कराने की योजना है।
मुनि पुंगव श्री सुधासागरजी के ही 1996 जयपुर के ऐतिहासिक वर्षायोग के उपरान्त मुनिश्री के ही आशीर्वाद से श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर संधीजी सांगानेर में भगवान ऋषभदेव ग्रन्थमाला की स्थापना हुई तथा भारतवर्ष का सम्पूर्ण दिगम्बर जन साहित्य का विक्रय केन्द्र भी स्थापित किया गया।
तभी से आचार्य ज्ञानसागरवागर्थ विमर्श केन्द्र, ब्यावर तथा भगवान ऋषभदेव ग्रन्थ माला सांगानेर की सहभागिता में सम्पूर्ण ग्रन्थ प्रकाशन कर रहे हैं, अभी तक ग्रन्थमाला से 130 ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।
बरेली कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीमती प्रमोदबाला मिश्रा के निर्देशन में श्रीमती मोनिका वार्ष्णेय ने शब्द एवं अर्थ की गम्भीर्य तपस्या के बल पर लिखा गया यह शोध प्रबंध साहित्य जगत की आदर्शताओं में शिरोमणी स्थान रखेगा। इस शोध प्रबन्ध में दो महान शब्द साधकों की तुलनात्मक गवेषणा चमत्कृत हुई है इस प्रबंध में शोधार्थी ने आ. क्षेमेन्द्र के चमत्कृत तत्वों को महाकवि आचार्य ज्ञानसागर द्वारा श्रृंगारित कराया है। हमारा केन्द्र डॉ. मोनिका वार्ष्णेय का आभार व्यक्त करता है। आपकी शोध प्रबन्धकीय साहित्य सेवा सदैव स्मरणीय रहेगी।
. चूँकि पूज्य महाराजश्री का मंगल-आशीष एवं ध्यान जैनाचार्यों द्वारा विरचित अप्रकाशित, अनुपलब्ध साहित्य के साथ जैन विद्या के अंगों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में किये शोध कार्यों के प्रकाशन की ओर भी गया है, तथा साहित्य पर्यालोचन सृजन प्रकाशन के सत्कर्म में संलग्न संस्थाओं और विद्वानों के प्रोत्साहनार्थ उनका मंगल आशीष रहा करता है। अतः हमें विश्वास है कि साहित्य, उन्नयन एवं प्रसार के कार्यो में ऐसी गति मिलेगी, मानो समराट खारवेल का समय पुनः प्रत्यावर्तित हो गया हो। एक बार पुनः प्रज्ञा एवं चरित्र के पुन्जीभूत देह के पावन कमलों में सादर सश्रद्धा नमोऽस्तु ।
सुधासागर - चरण भ्रमर अरुणकुमार शास्त्री 'व्याकरणाचार्य' निदेशक, आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र
ब्यावर (राज.)
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