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________________ तृतीय सर्ग १. संसार में विवाह एक मांगलिक कार्य माना गया है। इस समय दो पक्ष परस्पर में संबद्ध होते हैं। २. कन्या के जीवन में इस समय अपूर्व परिवर्तन होता है। वह अपने पिता के घर को छोड़कर दूसरों के घर में जाती है। ३. वहां उसे नये व्यक्ति और नया वातावरण मिलता है। यह स्थिति उसके लिए एक बार दुःखद होती है। ४. किन्तु कुछ समय के बाद वह दुःखद स्थिति समाप्त हो जाती है । वह वहां के वातावरण में रम जाती है। फिर उसके लिए वहां कोई अपरिचित नहीं रहता। ५. जब उस देवदत्ता का विवाह नजदीक आने लगा तब दत्त गाथापति प्रचुर तैयारी करने लगा। क्योंकि संसार में विवाह बोझिल कार्य है। ६. इस समय तो कन्या का विवाह और भी अधिक कठिन कार्य है, क्योंकि दहेज प्रथा बढ़ गई है। इसके कुपरिणाम भी आ गये हैं। ७. कौन पिता अपनी शक्ति के अनुसार अपनी कन्या को देना नहीं चाहता ? परन्तु इस समय मनुष्य कन्या के पिता से धन मांग कर लेते ८ यह प्रथा जब तक नष्ट नहीं होगी तब तक कन्या भारभूत ही होगी। अतः यह प्रथा शीघ्र ही नष्ट हो, ऐसा सबका विचार है। ९-१०. विवाह के निश्चित दिन दत्त गाथापति ने कन्या को अच्छे वस्त्र और आभूषणों से विभूषित किया। फिर उसे वाहन में बिठा कर अनेक लोगों के साथ राजमहल में गया और राजा को प्रणाम कर अपनी चिरपोषित कन्या अर्पित की।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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