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देवदत्ता
२२. राजा की मैं मुख से क्या कृतज्ञता प्रकट करूं ? उन्होंने मेरी पुत्री की
मांग करके मुझे निश्चित ही भारी बना दिया। २३-२४. मेरी पुत्री राजा की पुत्रवधु बनेगी-इसकी मेरे मन में प्रसन्नता
है। दत्त गाथापति की यह बात सुनकर वे सब प्रसन्न हुए। उन्होंने उनका सम्बन्ध निश्चित कर विवाह तिथि निर्णीत कर दी और प्रसन्नतापूर्वक राजा के पास आए।
२५. उन्होंने राजा को नमस्कार कर विवाह संबंधित सब बातें कही । सुनकर
राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उन लोगों को धन देकर उनकी प्रशंसा
की। २६. दत्त गाथापति की पुत्री का संबंध राजा के पुत्र से हुआ है-यह सुनकर नगरवासी कन्या के भाग्य की प्रशंसा करने लगे।
द्वितीय सर्ग समाप्त