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देवदत्ता
११. उन्हें अपने घर में लाकर उसने उनका सत्कार किया और पूछा-आप
लोग मेरे घर कैसे पधारे ? १२. मेरे योग्य क्या सेवा है ? जिससे आप लोग यहां आए हैं। या अन्य
कोई कारण है मुझे स्पष्ट कहें । १३-१४-१५. दत्त गाथापति की यह बात सुनकर उन्होंने अपने आगमन का
कारण बताते हुए कहा-राजा ने हमें यहां यह कहकर भेजा है कि वे अपने पुत्र का विवाह तुम्हारी सुन्दर और सुशील पुत्री देवदत्ता के साथ करना चाहते हैं । यदि तुम्हारी हार्दिक इच्छा हो तो राजा की आकांक्षा को पूर्ण करो। क्योंकि पिता अपनी पुत्री का सदा हित देखता है और उसकी चिंता करता है।
१६-१७. उनकी यह बात सुनकर दत्त गाथापति मन में प्रसन्न हुआ। उसने
उनको कहा—मेरी पुत्री निश्चित ही पुण्यवती है जो कि राजा ने अपने पुत्र के लिए उसकी मांग की है। उससे (राजकुमार से) अच्छा वर मेरी कन्या के लिए और कौन हो सकता है ?
१८. पिता अपनी पुत्री को वहीं देना चाहता है जहां वह सुख पाए। यदि
कन्या दुःखी होती है तो पिता को भी दुःख होता है। १९. पिता का प्रमुख कर्त्तव्य है कि वह अपनी पुत्री को अच्छे स्थान में दे।
जिससे वह सदा जीवन में सुखी रहे । कभी दुःखी न बने । २०. राजकुमार पुष्यनंदी युवराजरूप है। वह सुन्दर, शांत-स्वभावी, धीर,
कुलीन, जनप्रिय, ज्ञानयुक्त और वय में मेरी पुत्री के समान है । २१. वह सब प्रकार से मेरी पुत्री के योग्य है, इसमें मुझे कुछ भी संशय नहीं
है । अतः मैं उसके साथ शीघ्र ही अपनी कन्या का विवाह करने के लिए उद्यत हूं।