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द्वितीय सर्ग
१. मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह सुन्दर वस्तु को देखकर उसमें मुग्ध
हो जाता है और उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। २. दत्त गाथापति की पुत्री को देखकर राजा ने अपने मन में विचार किया
कि यह मेरे राजकुमार के लिए सर्वथा योग्य है । ३. यदि इसका राजकुमार पुष्यनंदी के साथ विवाह हो जाए तो मेरा कुल'
भी धन्य होगा और राजकुमार भी। ४. मेरे नगर में अनेक कन्याएं हैं पर इसके समान कोई नहीं है। अतः मैं
इसे कुमार हेतु प्राप्त करने की शीघ्र ही चेष्टा करूंगा। ५-६. मन में इस प्रकार विचार कर राजा ने अन्तरंग पुरुषों को बुलाकर
कहा-तुम लोग मेरे आदेश से नगर के प्रतिष्ठित दत्त गाथापति के घर ... जाओ और मेरे कथनानुसार उसको कहो
७. राजा तुम्हारी सुन्दर, धीर, सुशील और कार्य-दक्ष पुत्री देवदत्ता को
अपने पुत्र के लिए चाहते हैं । ८. यदि तुम्हारी इच्छा हो तो राजकुमार पुष्यनंदी के साथ उसका शीघ्र
ही विवाह कर दो। इसमें मेरा कोई भी बलप्रयोग नहीं है । ९. राजा की इस प्रकार आज्ञा प्राप्त करके वे चतुर व्यक्ति. दत्त गाथापति __ के घर गये। क्योंकि भृत्य-जन आज्ञा पालक होते हैं। १०. उनको अपने घर में आए हुए देखकर दत्त गाथापति तत्काल उनके
सम्मुख गया और उनका अभिवादन किया।