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ललियंगचरियं
५६. पत्नी की वाणी सुनकर उसने कहा- राजा ने मुझे अभी बुलाया है,
निश्चित ही कोई आवश्यक कार्य है, अत: मैं वहां जा रहा हूं। ५७-५८. पति की बात सुनकर उसने ललितांगकुमार को यह सलाह दी कि
यदि आवश्यक कार्य है तो इस मित्र (सज्जन) को सब जानने के लिए राजमहल भेज दें। फिर भी यदि आवश्यक कार्य हो तो आप जरूर जायें, मुझे कोई बाधा नहीं ।
५९. पत्नी के समयोचित वचन को सुनकर ललितांगकुमार ने मित्र सज्जन __ को बुलाकर कहा--तुम शीघ्र राजमहल जाओ । कोई कार्य है।
६०. ललितांगकुमार के वचन को सुनकर सज्जन मन में बहुत प्रसन्न हुआ।
क्योंकि उसने राजा (जितशत्रु) से सत्कार प्राप्त किया था। अतः वह वहां जाने में प्रसन्न था।
६१. प्रसन्नचित्त और गमन का इच्छुक सज्जन जब नीचे उतरा तब बाहर
छिपे हुए व्यक्तियो ने उसे गुप्तरूप से मार डाला।
६२. मारने पर उसके मुख से भयंकर शब्द निकला। उसे सुनकर विस्मत हो
ललितांगकुमार ने पुष्पावती के साथ बाहर आकर देखा।
६३. राजा की आज्ञा से उसे शीघ्र मारकर वे सभी वधक भाग गये । सज्जन
को मरा हुआ देखकर पुष्पावती ने पति से यह निवेदन किया
६४. प्रिय ! यदि आप अभी जाते तो क्या होता, स्पष्ट है। मित्र को मरा
हुआ देखकर राजा ललितांग मन में कुपित हुआ।
६५. महल से बाहर आकर उसने अपनी सेना सज्जित की और राजा
(जितशत्रु) के साथ युद्ध की घोषणा कर दी । सुनकर सभी विस्मित
६६. घर में युद्ध छिड़ा देखकर राज़ा जितशत्रु बड़ा दुःखी हुआ । वह अपने
जामाता के पास आया और पूछा- तुम्हारा कुल कौन सा है ?
६७. प्रश्न सुनकर कुपित हुए ललितांगकुमार ने कहा-मेरा भुजाबल ही
तुम्हें इसका निश्चित उत्तर देगा।