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ललियं गचरियं
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४३. मेरे मन में बहुत विषाद है कि मैंने तुच्छ जाति वाले के साथ पुत्री का शीघ्र विवाह कर दिया। हां ! अब मैं क्या करूं ?
४४. उस जामाता से क्या जिससे मेरे कुल की कीर्ति नष्ट हो ? अतः यह जामाता मुझे किंचित् भी पसंद नहीं है ।
४५. जब इसका कुल प्रकट होगा तब प्रजा मेरी निंदा करेगी । अतः इसका कुल प्रकट न हो इससे पूर्व ही मुझे कुछ करना चाहिए ।
४६. मारने के अतिरिक्त इसका अन्य कोई उपाय नहीं है । अतः इसका वध कैसे हो सके वह कार्य मुझे करना चाहिए ।
४७. इस प्रकार मन में मारने की योजना बनाकर उसने विश्वासपात्र मनुष्यों को बुलाया । उनके आने पर राजा ने उन्हें एकान्त में यह कहा -
४८. आज रात्रि में दस बजे के बाद जो कोई भी व्यक्ति ललितांगकुमार के महल से आये उसे तुम लोग मार डालना, यह मेरी आज्ञा है ।
४९. राजा की यह आज्ञा पाकर वे सभी बहुत विस्मित हुए । पर राजा के भय से किसी ने यह नहीं पूछा कि जामाता को मारने का क्या कारण है ?
५०. राजा ने उन्हें यह आज्ञा देकर शीघ्र ही विसर्जित कर दिया । तत्पश्चात् उसने एक विश्वासपात्र व्यक्ति को बुलाया ।
५१. उसके आने पर राजा ने उसे एक पत्र लिख कर दिया और कहा - इस पत्र को ले जाकर तुम राजा ललितांगकुमार को दे दो ।
५२. पत्र को लेकर वह ललितांगकुमार के महल में गया और उसे दे दिया । पत्र को देखकर राजा ललितांग यह जानने के लिए उत्सुक हुआ कि इसमें क्या लिखा हुआ है ?
५३. पत्र को पढ़कर वह राजमहल जाने के लिए शीघ्र ही तैयार होने लगा । उसे कहीं जाने का इच्छुक देखकर उसकी पत्नी ने साश्चर्य पूछा
५४. इस रात्रि में अभी आप कहां जाना चाहते हैं, मुझे कहें । प्रिया की वाणी सुनकर उसने कहा- मैं अभी राजमहल जा रहा हूं ।
५५. रात्रि के इस समय अभी आपका वहां क्या काम है ? इस समय आपका वहां जाना उचित नहीं है, ऐसा मेरा चिंतन है ।