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ललियंगचरियं २१. मैंने तुम्हारे साथ पहले जो भी दुर्व्यवहार किया है तुम उन सबको माफ
करो। क्योंकि महान् व्यक्ति उसे हृदय से क्षमा कर देते हैं जो उनसे
क्षमा मांगते हैं। २२. इस प्रकार उसकी बात सुनकर राजा बहुत दयार्द्र हो गया। उसे स्नेह
देते हुए कहा--तुम मन में कुछ भी चिंता मत करो। २३. तुम यहां सुख से रहो । तुम्हें यहां कुछ भी कष्ट नहीं होगा। लेकिन तुम
अपने स्वभाव को बदलो क्योंकि कुटिल स्वभाव ही सदा दुःख देने वाला
होता है। २४. तत्काल सज्जन ने मित्र राजा की यह बात स्वीकार कर ली। लेकिन
स्वभाव में परिवर्तन करना मनुष्यों के लिए सदा कठिन है। २५. क्या अग्नि अपने स्वभाव को छोड़ती है ? क्या जल अपने स्वभाव को
छोड़ता है ? उसी प्रकार प्रायः दुर्जन भी अपने स्वभाव को छोड़ने में
समर्थ नहीं होते। २६. सज्जन कुछ दिन तो कुमार के समीप में ठीक से रहा। लेकिन जब
उसकी स्थिति दृढ हुई तब वह क्या करता है, पाठक देखें ? २७. कुमार उसे अनेक बार कार्य से राजा जितशत्रु (जो उसका ससुर है) के
पास भेजता है। इस प्रकार सज्जन का राजा से परिचय हो गया। २८. उसने अपनी निपुणता से राजा के मन में शीघ्र प्रचुर विश्वास प्राप्त कर
लिया । एक दिन राजा ने एकान्त में सज्जन से यह विचित्र प्रश्न पूछा-- २९. मेरे जामाता का कौन-सा वंश है ? मुझे शीघ्र स्पष्ट बताओ। राजा
की बात सुनकर मत्सरी सज्जन इस प्रकार असत्य बोलता है३०. मैं श्रीवास नगर के राजा नरवाहन का पुत्र हूं। तुम्हारा जामाता भी
वहीं का रहने वाला है, इसमें संदेह नहीं है। ३१. यह देखने में सुरूप है पर कुलीन नहीं । सुन्दर रूप अच्छे कुल का कारण
नहीं होता क्योंकि सुरूपताहीन व्यक्ति भी कुलीन होते हैं ।