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ललियंगचरियं
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३३. निश्चित ही राजकुमारी के पुण्य कर्म अभी नष्ट नहीं हुए हैं । अतः यह
___महानुभाव बहुत दूर देश से चिकित्सा करने आया है। ३४. मनुष्यों को आलस्य छोड़कर सदा रोग को नष्ट करने के लिए चेष्टा __ करनी चाहिए । प्रयत्न करने पर भी यदि वह शांत नहीं होता है
तो कर्म को प्रमुख मानना चाहिए, ऐसा कहा गया है । ३५. राजा की वाणी सुनकर वह कुमार के पास आकर बोला-आप शीघ्र
अंदर चलें, राजा आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। ३६. द्वारपाल का यह वचन सुनकर दयालु कुमार अपनी समस्त वस्तु लेकर
शीघ्र राजा के पास आया।
३७. कुमार ने राजा को नमस्कार किया और राजा ने उसका अभिवादन ।
महान् व्यक्ति संसार में कभी इस पवित्र व्यवहार को नहीं छोड़ते । ३८. तब राजा ने कुमार से प्रार्थना की मेरी पुत्री के ऊपर कृपा करके
उसके नेत्र ठीक कर दें। बिना आंख के जीवन व्यर्थ है।
३९. पांख के बिना पक्षी व आंख के बिना मनुष्य संसार में कुछ नहीं कर
___ सकते । अतः इनका महत्व बताया गया है। ४०. तुम विलंब मत करो। मेरे दुःख को दूर करो। दयालु व्यक्ति सदा
दूसरों के दुःख को दूर करते हैं । ४१. राजा की वाणी सुनकर करुणाशील कुमार ने भारंड पक्षी के वचना
नुसार लेप बनाया। ४२. चित्त में आराध्यदेव का ध्यान करके तथा चारों शरणों को ग्रहण
करके कुमार ने राजकुमारी के आंखों पर लेप लगाया। ४३. लेप से उसकी चिरकाल से खोई हुई आंख की ज्योति वापिस आ गई।
पुण्योदय से मनुष्य के क्या-क्या दुःख नष्ट नहीं होते ? ४४. उसके इस प्रभाव को देखकर तब सभी मनुष्य विस्मित हो गये । राजा __ ने भी प्रसन्न होकर कुमार से यह कहा
१. अर्हत्, सिद्ध, साधु और केवलिभाषित धर्म ।