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________________ ललियंगचरियं ३७ १०. कर्मोदय से उसकी आंखें चली गई हैं । मनुष्य संसार में जैसा कर्म करता है उसका वैसा ही फल उसे मिलता है। ११. उसकी चिकित्सा करने के लिए राजा ने अच्छे वैद्यों को बुलाया। पर कोई भी सफल नहीं हुआ। संसार में कर्म की बात विचित्र है। . १२-१३. अंत में निराश होकर उसने यह घोषणा की कि जो मेरी पुत्री की आंखें ठीक कर देगा उसे मैं अपना आधा राज्य दे दूंगा और उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दूंगा, इसमें किंचित् भी संशय नहीं है। १४. उसकी (भारंड पक्षी की) बात सुनकर एक पक्षी ने पूछा-क्या कोई ऐसा कुशल उपाय है जिससे राजकुमारी देख सके ? १५. तब भारंड पक्षी ने कहा-संसार में अनेक उपाय हैं जिससे राजकुमारी खोई ज्योति को पा सकती है। पर कोई भी मनुष्य उपाय को नहीं जानता है। १६. तब भारंड पक्षी ने पूछा-वह कौन सा उपाय है ? मैं उसे अभी जानना चाहता हूं। यदि आपको कोई बाधा न हो तो मुझे शीघ्र बताएं। १७-१८. भारंड पक्षी ने उसकी जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा-इस वट वृक्ष की लता के रस में हमारी बीट मिलाकर यदि कोई दक्ष मनुष्य उसकी आंखों के ऊपर लेप करे तो वह खोई हुई ज्योति को पा सकती है । इसमें संदेह नहीं है । १९. यह सारभूत बात कह कर वह भारंड पक्षी मौन हो गया । समझदार अधिक नहीं बोलते । वे अल्प शब्दों में ही बहुत कह देते हैं । २०. उसकी बात सुनकर कुमार ने विस्मित होकर सोचा- सर्वप्रथम इसका प्रयोग अपने ऊपर करना चाहिए।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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