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ललियंगचरियं
७४. अब तुम अपने आग्रह को छोड़कर मेरे कथन को स्वीकार करो, जो
· अभी सत्य सिद्ध हुआ है। ७५. उसके वचन को सुनकर कुमार ने कहा- मेरे विचार पहले की तरह
अब भी मजबूत है। ७६. अधार्मिक व्यक्ति एक बार कुछ पा करके प्रसन्न होता है किंतु अंत में
उसका परिणाम सदा दुःखद होता है । ७७. कुमार के वचन को सुनकर सज्जन ने हंसते हुए कहा-मित्र ! तुम
दुराग्रही हो। : ७८. पूछ कर भी तुम अपने आग्रह को नहीं छोड़ते हो । संसार में तुम्हारे
समान दूसरा कोई मूर्ख नहीं है । ७९. यदि तुम दृढ़धर्मी हो तो अपने वचन का पालन करो। उसके कथन को
सुनकर कुमार ने कहा८०. मैं निश्चित ही वचन का पालन करूंगा-इसमें संदेह नहीं है। वह
मनुष्यों में नीच है जो अपने वचन का पालन नहीं करता। ८१ मैंने धर्म की रक्षा के लिए तुम्हें अभी वचन दिया था तब उसका पालन
करने में मेरा मन दुर्बल नहीं है। ८२. समीप में जो वट वृक्ष है उसके नीचे चलो। उसके वचन को सुनकर
सज्जन हर्षित हुआ। ८३. उसका मन कुमार के नेत्रों को लेने के लिए उत्सुक हुआ। मित्र होकर
भी वह शत्रु की तरह आचरण करने लगा। ८४. उसने कुमार को ऐसा करने के लिए नहीं रोका । वह कुटिलहृदयी सदा
उसका अहित चाहता है।
८५. जो सहृदय मनुष्य दुर्जनों के साथ मैत्री करते हैं वे बाद में पश्चात्ताप
करते हैं। ८६. अतः दुर्जनों के साथ मैत्री नहीं करनी चाहिए। कौवे के साथ मित्रता
करने से हंस मृत्यु को प्राप्त हुआ। ।