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ललियं गचरियं
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३४ उसकी मर्मगभित और हृदयविदारक वाणी को सुनकर कुमार पूर्ववत् दान देने लगा ।
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३५. उससे दान प्राप्त करके सभी याचक प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करने लगे । दान का माहात्म्य विचित्र है ।
३६. सज्जन को जब यह ज्ञात हुआ कि कुमार पूर्ववत् दान देने लगा है तब वह हृदय में जलता हुआ राजा के पास आया ।
३७. नृपति को नमस्कार कर उसने निवेदन किया— कुमार आपकी आज्ञा का उल्लंघन कर पूर्ववत् दान देने लगा है ।
३८. उसके दान से धीरे-धीरे राज्यकोष - खाली हो रहा है । अतः समय पर कुछ करना चाहिए, अन्यथा पश्चात्ताप करना होगा ।
३९. बुद्धिमान् वही है जो अग्नि प्रज्वलन के पूर्व ही अपने घर में जलमय कुएं को खोद लेता है ।
४०. सज्जन के मुख से कुमार के पुनः दान देने की बात सुनकर राजा अपने आदेश के भंग होने से शीघ्र क्रुद्ध हो गया ।
४१. उसने तत्काल कुमार को बुलाकर कहा- तुमने मेरे आदेश का उल्लंघन क्यों किया ?
४२. मैं तेरे इस दुस्साहस को तनिक भी सहन नहीं करूंगा । वह मूर्ख है जो जाता हुआ भी रोग की चिकित्सा नहीं करता ।
४३-४४. यदि तू सुख से रहना चाहता है सूर्योदय के पूर्व ही नगर को छोड़कर जाओ, यह मेरा आदेश है ।
तो दान देना छोड़ दे । अन्यथा अन्यत्र जहां इच्छा हो वहां चले