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ललियंगचरियं
९. एक दिन ललितांगकुमार का जन्म दिन आया । राजा ने राजसभा में
उसे एक हार दिया। १०. हार लेकर जब वह राजसभा से महल की ओर जाने लगा तब रास्ते में
एक याचक उससे कुछ मांगने लगा। ११. करुणाशील कुमार ने तब उसे वह हार दे दिया। दाता कभी भी अमूल्य
वस्तु को देने में संकोच नहीं करता । १२. मत्सरहृदयी सज्जन ने यह सब देखा। उसने दूसरे दिन राजा को कुमार
का यह कार्य निवेदन किया। १३. सज्जन के मुख से हार-दान की बात सुनकर राजा कुपित हो गया ।
उसने कुमार को शीघ्र बुलाया । १४. कुमार ने आकर पिता के चरणों में विनयपूर्वक नमस्कार किया और
पूछा-आपने मुझे क्यों याद किया है, कहें ? १५. उसके विनय को देखकर एक बार राजा का क्रोध शांत हो गया ।
विनीत व्यक्ति चंड क्रोधी को भी शांत कर सकता है। १६. फिर भी तथ्य को जानने के लिए राजा ने सहज भाव से पूछा-मैंने
कल तुम्हें जो हार दिया था वह कहां है ? १७. कुमार ने निर्भयतापूर्वक कहा--मैंने उसे एक याचक को दे दिया ।
सत्यवादी कभी भी सत्य बोलने में डरता नहीं है । १८. राजा ने शिक्षा देते हुए स्नेहपूर्वक कहा-पुत्र ! संसार में दान की भी
मर्यादा होती है। १९. यदि तू इस प्रकार दान देगा तो सब धन नष्ट हो जायेगा। फिर राज्य
की रक्षा करना कठिन हो जायेगा । २०. अतः 'सीमा में ही सब कार्य शोभित होते हैं' इस नीति वचन को याद __ करके तू सीमातिरिक्त दान देना छोड़ दे । २१. तू मेरे कथन की उपेक्षा नहीं करेगा-मैं ऐसा विश्वास करता हूं। ऐसा
कहकर राजा ने उसे विदा किया।