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________________ प्रथम सर्ग मंगलाचरण मैं तीर्थंकरों और सदगरओं के चरणों में भक्तिपर्वक नमस्कार कर प्राकृत भाषा में सुंदर ललितांग चरित्र की रचना करता हूं। १. प्राचीन काल में श्रीवास नगर में नरवाहन नाम का एक धार्मिक राजा रहता था। उसका हृदय शुद्ध था। वह जनता के प्रति वात्सल्य रखता था। जनता उसको चाहती थी। २. उसके ललितांगकुमार नामक एक पुत्र था। जो विनीत, प्रियभाषी, गंभीर, मृदुहृदयी, धार्मिक तथा सभी का प्रिय करने वाला था। ३. वह दयालु था। किसी दरिद्र को देखकर तत्काल धन देकर उसका सहयोग करता था। ४. सभी याचक उसकी प्रशंसा करके घर जाते थे। मुक्त हस्त से दान करने वाले दाता की कौन प्रशंसा नहीं करता ? ५. उसकी यह श्लाघा सज्जन नामक एक व्यक्ति को अच्छी नहीं लगती __ थी, जो उसका मित्र था और उसी नगर में रहता था । ६. दूसरों की प्रशंसा सुनना भी संसार में सरल कार्य नहीं है । नीच व्यक्ति दूसरों की प्रशंसा सुनकर सदा जलते हैं। ७. कुमार सदा गरीबों को दान देता है, यह बात उसने राजा से निवेदन की। ८. धर्महृदयी राजा ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। फिर भी मत्सर हृदयी सज्जन निराश नहीं हुआ।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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