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सुबाहुचरियं
१२३ १२. मेरे घर को पावन करें और भिक्षा ग्रहण करें। विना सद्भाग्य के
साधुओं के दर्शन नहीं होते हैं। १३. उसके शुद्ध हृदय से निकली हुई प्रार्थना को सुनकर सुदत्त मुनि उसके
घर भिक्षा के लिए प्रविष्ट हुए।
१४. सुमुख ने प्रसन्नचित्त से उस शुद्ध मुनि को शुद्ध वस्तु का शुद्ध भावना से
दान दिया।
१५. उस समय उसके घर में पांच दिव्य प्रकट हुए । उनको देखकर मनुष्य
परस्पर में इस प्रकार बोलने लगे
१६. यह सुमुख गाथापति धन्य है जिसने मुनि को दुर्लभ दान दिया है ।
१७. श्रावक सामायिक आदि कृत्य करने में समर्थ हैं किंतु सुपात्रदान विना
संयोग के प्राप्त नहीं होता। १८. जब वस्तु शुद्ध हो, देने वाला शुद्ध हो तथा देने की भावना हो तब पात्र
दान प्राप्त होता है। १९. विशुद्ध भावों से उसको [मुनि को] दान देकर उसने मनुष्यायु का
बंधन किया। क्योंकि पात्रदान महान् फल देने वाला होता है।
२०-२१. वह बहुत वर्षों तक मनुष्यायु का पालन कर, मृत्यु को प्राप्त कर
इस नगर में राजा अदीनशत्रु की रानी के गर्भ से उत्पन्न हुआ है। माता-पिता ने इसका नाम सुबाहुकुमार दिया।
२२. यह सुबाहुकुमार सुमुख गाथापति का जीव है। मुनि को दान देकर
इसने इस संपदा को प्राप्त किया है।