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________________ सुबाहुचरियं ११७ ८. जब वह तरुण हुआ तब राजा ने पांच सौ कन्याओं के साथ उसका विवाह कर दिया। ९. सुबाहुकुमार उनके साथ कीचड़ में कमल की तरह रहता हुआ अपना समय बिताने लगा। उसका हृदय धर्मपरायण था । १०. एक बार चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी शिष्यों सहित ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए वहां आये। . ११-१२. वे नगर के बाहर पुष्पकरंडक नामक उद्यान में ठहरे । एक दूसरे से भगवान् का आगमन सुनकर जनता अहंपूर्विका दर्शन करने के लिए वहां गई । घर में आई हुई गंगा में कौन स्नान करना नहीं चाहता ? १३. राजा अदीनशत्रु स्वजनों के साथ दर्शन करने के लिए गया। उनके दर्शन कर वह स्वयं को धन्य मानने लगा। १४. भगवान् ने तब उस विशाल परिषद् को धर्मोपदेश सुनाया। उसको सुनकर भव्य जन यथाशक्ति नियम ग्रहण करते हैं। १५. उपदेश सुनकर सुबाहुकुमार भगवान् के समीप आया और इस प्रकार अपनी भावना निवेदित की१६. मैं अभी आपके पास अनगारधर्म ग्रहण करने के लिए समर्थ नहीं हूं। अतः अगारधर्म ग्रहण करना चाहता हूं। १७. उसके इस वचन को सुनकर कृपालु भगवान् महावीर ने कहा- 'अहा सुहं देवाणुप्पिया'-तुम्हें जैसा सुख हो उसमें विलम्ब मत करो। १८. भगवान् के समीप में द्वादशविध अगारधर्म को ग्रहण कर सुबाहुकुमार अपने महल में आ गया।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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