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कथावस्तु
११३ अपने प्रव्रज्या-ग्रहण के विचार रखे । माता-पिता ने उसे विविध प्रकार से समझाने का प्रयत्न किया। जब वह नहीं माना तब उसे प्रव्रज्या-ग्रहण करने की अनुमति दे दी। तत्पश्चात् सुबाहुकुमार अपनी पत्नियों के पास आया । उनसे भी प्रव्रज्या-ग्रहण करने की अनुमति मांगी। उन्होंने भी उसे विविध प्रकार से समझाने का प्रयास किया। जब वह नहीं माना तब उसे आज्ञा दे दीं। राजा अदीनशत्रु ने सुबाहुकुमार का दीक्षा महोत्सव मनाया । वह उसे लेकर भगवान् के समीप आया और कहा-इसे प्रव्रज्या प्रदान करें । भगवान् ने सुबाहुकुमार को दीक्षा प्रदान की । सुबाहुकुमार मुनि बन गया। भगवान् ने उसे सब कार्य यत्नापूर्वक करने की शिक्षा दी। सुबाहुकुमार ने अनेक वर्षों तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया। अन्त में अनशनपूर्वक मृत्यु का वरण कर वह सौधर्म देवलोक में देव बना। वहां से च्यवन कर मनुष्य और देव संबंधित सर्व ग्यारह भव करके सिद्ध; बुद्ध, मुक्त होगा ।