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देवदत्ता
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२४. क्या किसी ने तुझ पर आक्रोश किया है या किसी ने तुझे लाडना दी है ? जिससे तुम इस प्रकार खिन्नवदन दिखाई दे रही हो ।
२५. तुम शीघ्र ही मुझे उसका नाम बताओ । जिससे मैं उसे प्रसन्न करूं ।
दंड देकर तुम्हें
२६. राजा की बात सुनकर श्यामा रानी ने कहा -- प्रिये ! मुझ पर आक्रोश किया है और न मुझे ताडना दी हैं ।
२७. किंतु मेरे दुःख का जो कारण है उसे आप ध्यान से सुनें
न तो किसी ने
२८-२९-३०. आप मुझे छोड़कर अन्य रानियों का कुछ भी सत्कार नहीं करते हैं, यह जानकर उन रानियों की माताओं ने परस्पर में यह निर्णय किया है कि हमारी पुत्रियों के प्रति इस तिरस्कार का कारण श्यामा रानी है । उसमें मुग्ध होकर राजा हमारी कन्याओं को बहुमान नहीं देता है । अतः किसी प्रकार उसे मार देना चाहिए ।
३१. हे प्रिय ! मेरे दुःख का यही कारण है । न मालूम वे माताएं मुझे कब, किस प्रकार मार देंगी ।
३२. उसकी यह बात सुनकर राजा ने कहा – प्रिये ! तुम इस प्रकार विलाप मत करो ।
३३. मेरी विद्यमानता में कौन तुम्हें मार सकता है ? क्योंकि जिसके रक्षक शक्तिशाली हैं उसे कौन मार सकता है ?
३४. जो मेरी प्राणप्रिया को मारने की चेष्टा करेगा वह निश्चित ही अपने लिए मृत्यु को आमंत्रित करेगा ।
३५. अत: तुम दुःख को छोड़कर स्वस्थ होओ और प्रसन्नमन से अपने सब कार्य करो ।