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...देवदत्ता : .
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वाले, देवताओं द्वारा पूजितपाद, अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर अपने शिष्यों के साथ नगर के बाहर विराज रहे थे। भव्य मनुष्य भगवान् के सान्निध्य का बहुत लाभ उठा रहे थे।
५७. गौतम स्वामी उनके प्रमुख शिष्य थे। वे विनम्र, आचारनिपुण तथा
श्रुतसंपन्न थे । वे षष्ठभक्त (बेले-बेले की तपस्या) तप करते थे। ५८. तप के द्वारा कर्मों का नाश होता है, आत्मा की शुद्धि होती है तथा रोगों __ का नाश होता है, अतः मनुष्यों को सदा तप में रत रहना चाहिए। ५९. एक बार वे षष्ठभक्त तप के पारणे के लिए नगर में गये। तब उन्होंने
दंडित की हुई देवदत्ता को देखा और मन में सोचा६०. यह स्त्री कौन है ? इसने क्या बुरा काम किया है ? जिससे राजपुरुष
इसे दंड दे रहे हैं। क्योंकि बिना कर्म के फल की प्राप्ति. नहीं होती। ६१. तब उन्होंने एक व्यक्ति को पूछा-यह स्त्री कौन है ? इसने क्या बुरा
काम किया है ? जिससे ये (राजपुरुष) इसे इस प्रकार दंड दे रहे हैं। ६२. उनकी यह वाणी सुनकर एक व्यक्ति ने कहा- यह स्त्री राजा पुष्यनंदी
की रानी है।
६३. इसने कामांध होकर अभी राजमाता को मार दिया है। अतः कुपित
होकर राजा ने इसको शीघ्र ही इस प्रकार का दंड दिया है। ६४-६५. उसके इस प्रकार के वचन सुनकर गौतम स्वामी ने मन में
सोचा-इस स्त्री ने निश्चित ही पूर्व भव में इस प्रकार का कोई कुकर्म किया है जिससे यह अभी नारकियों के समान दु:ख भोग रही है । क्योंकि किए हुए कर्म मनुष्य को बिना फल दिए नही छोड़ते।
६६. मन में इस प्रकार विचार करते हुए वे भिक्षा के लिए नगर में गए।
भिक्षा लेकर वे भगवान् के पास आए और निवेदन किया