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देवदत्ता
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४५. इस प्रकार कहकर उसने शीघ्र ही राजपुरुषों को बुलाया और कहा___ इस दुष्टा को चौराहे पर ले जाओ और मनुष्यों के सामने कहो४६. इस दुष्ट रानी ने राजा पुष्यनंदी की माता को मार डाला है । अतः
राजा ने कुपित होकर इसे इस प्रकार का दंड दिया है। ४७-४८. इसके नाक, कान काटकर, इसको अवकोटक बंधन से बांधकर,
इसका मांस काट कर, इसको वह मांस खिलाकर, सूली पर चढाकर, इसको शीघ्र ही मार देना। क्योंकि पापी को दंडित करना 'राजा का प्रथम कर्तव्य है।
४९. राजा की इस प्रकार आज्ञा पाकर वे (राजपुरुष) रानी को लेकर राज
पथ पर आये और राजा के कथनानुसार इस प्रकार मनुष्यों के बीच में कहने लगे
५० यह रानी देवदत्ता राजमाता की घात करने वाली है। अतः क्रुद्ध होकर
राजा ने इसको इस प्रकार दंड दिया है।
५१-५२. इस प्रकार उन्होंने मनुष्यों के सामने उसके नाक, कान काट कर,
फिर उसे अवकोटक बंधन से बांधकर उसका मांस काटने लगे। फिर उसको उसका मांस खाने के लिए देने लगे। इस प्रकार उसे दंडित करने . लगे। मनुष्य जैसा कर्म करता है उसका वैसा ही फल पाता है।
५३. उसकी (देवदत्ता की) स्थिति को देखकर और पाप का फल साक्षात्
देखकर द्रष्टाओं का मन कांपने लगा। पाप के प्रति उनमें भय उत्पन्न हुआ ।
५४-५५-५६. उन दिनों में जगवत्सल, मनुष्यों को सत्पथ दिखाने वाले, भव
पीड़ितों को त्राण देने वाले, अनाथों के नाथ, सर्वज्ञ, मनुष्यों को तारने