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देवदत्ता
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३३-३४. अन्य व्यक्ति को वहां न देखकर इसको (राजमाता को) देवदत्ता ने
ही मारा है, इस प्रकार मन में निश्चय करके वे राजा पुष्यनंदी के पास आई और बोली-स्वामिन् ! अनर्थ हो गया। आपकी माता को रानी (देवदत्ता) ने अभी मार डाला।
३५ दासियों के मुख से इस प्रकार सुनकर राजा पुष्यनंदी मन में प्रचुर दुःख
पाता हुआ मूच्छित होकर नीचे गिर पड़ा। ३६. राजा की यह स्थिति देखकर वे (दासियां) मूर्छा को दूर करने का
प्रयत्न करने लगीं। क्योंकि राजा उनका आधाररूप था।
३७. बेहोशी दूर होने पर राजा शीघ्र माता के पास आया। उसके मृत
शरीर को देखकर वह बहुत विलाप करने लगा। ३८. राजमाता की मृत्यु हो गई है—यह बात एक दूसरे से सुनकर नगर के
अनेक लोग उसकी शवयात्रा में आये। ३९. राजा पुष्यनंदी ने उसका अन्तिम कार्य (संस्कार) बड़े आडम्बर से
किया। फिर सब कार्यों से निवृत्त होकर वह राजमहल आया । ४०. क्रुद्ध हुए उसने अपने मन में इस प्रकार सोचा-देवदत्ता स्त्री नहीं है ।
वह मनुष्यरूप में राक्षसिनी है । ४१. उसने अभी वह कार्य किया है जिसको सामान्य स्त्री नहीं कर सकती।
अतः इसको इस प्रकार का दंड देना चाहिए जिससे वह शीघ्र ही मर
जाये। ४२. मन में इस प्रकार का विचार कर उसने देवदत्ता को बुलाया और __कहा-तुम क्रूर हो, दुष्ट हो । तुमने मेरे कुल को कलंकित किया है। ४३. संसार में बहू का कर्तव्य होता है कि वह सदा सास की मन से सेवा
करे । किंतु दुःख है, तुमने सेवा करना तो दूर, उसको मार डाला। ४४. तुम न मेरे महल में रहने योग्य हो और न इस संसार में जीवित रहने
के योग्य । अतः मैं तुमको इस प्रकार का दंड दूंगा जिससे जनता भी शिक्षा ग्रहण करेगी।