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देवदत्ता
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२२. वह देवदत्ता उसके (काम के) वशीभूत होकर अपनी सास को मारने
का विचार करने लगी। वह सावधान होकर उसको मारने का अवसर
देखने लगी। २३. एक बार राजा पुष्यनंदी की माता स्नान कर एकांत में सोई हुई थी।
वह देवदत्ता घूमती हुई अचानक वहां आ गई। २४. अपनी सास को एकांत में सोई हुई देखकर तथा अन्य किसी को वहां न
देखकर उसने अपने मन में इस प्रकार विचार किया
२५. मेरे सुख में बाधक इसको मारने का यह अच्छा समय है। इस प्रकार
विचार कर वह शीघ्र ही रसोई घर में गई। २६-२७. उसने एक लोहदंड को लेकर अग्नि में तपाया। उसको केसू के पुष्प
की तरह लाल करके संडासी से पकड़कर जहां सास सोई हुई थी वहां आई और उस लोहदंड को उसके (सास के) गुह्य स्थान में घुसेड़ दिया।
२८. क्या किसी ने सोचा था कि देवदत्ता इस प्रकार की है ? सदा सास की
सेवा करना ही जिसका कर्तव्य था वह कामांध उसको मार देगी।
२९. हे काम ! तुमको धिक्कार है। जो तुमने उस दयालु देवदत्ता को क्रूर ___ और विवेकभ्रष्ट बना दिया और उससे अचितित कार्य करा लिया। ३०. गुह्य स्थान में (लोहदंड के) घुसड़ने से उसके (राजमाता) मुंह से चीख
निकली । उसको सुनकर दासियां शीघ्र ही दौड़ती हुई वहां आई। ३१-३२. तब उन्होंने जाती हुई देवदत्ता को देखा। यह क्रन्दन करती हुई
सास को छोड़कर कैसे जा रही है-इस प्रकार मन में विचार करती हुई वे राजमाता के पास आई। उसको मृत देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ।