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________________ देवदत्ता ११. राजा ने आये हुए सभी व्यक्तियों का स्वागत किया और शुभ मुहूर्त में उनका (राजकुमार पुष्यनंदी और देवदत्ता का) विवाह कर दिया । १२. दत्त गाथापति ने अपने सामर्थ्यानुसार कन्या को प्रचुर धन दिया । तत्पश्चात् वह कन्या को इस प्रकार शिक्षा देता हुआ अपने घर आ गया १३. पुत्रि ! तुम यहां सुखपूर्वक रहना। सास, ससुर की आज्ञा का पालन करना। कुल के यश को बढ़ाना और कुलरूपी आंगन में सूर्य-समान चमकना । १४. वहां से प्रस्थान करते समय सबका मन गद्गद् हो गया। जो कन्या घर में स्नेह से पाली गई थी वही आज दूसरे के घर में चली गई। १५. संसार का यह निश्चित नियम है कि कन्या दूसरे के घर की होती है। वह दूसरे के वंश में वृद्धि करती है । अतः वह पराई होती है। १६. सुशील पत्नी को पाकर राजकुमार मन में बहुत प्रसन्न हुआ। वह अपने जीवन के लिए अच्छी कल्पनाएं करने लगा। १७. वह उसके साथ सुखपूर्वक रहता हुआ अपने समय को प्रसन्नतापूर्वक 'व्यतीत करने लगा। वह अपने कर्तव्य का पालन करता हुआ मातापिता की सेवा करने लगा। तृतीय सर्ग समाप्त
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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