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________________ 17 नीतिकथा उपदेशात्मक एवं जन्तु प्रधान व बालकोपयोगी होती हैं। इसमें अनेक उपकथाएँ भी समाविष्ट की जाती हैं, किन्तु लोककथा मानव जीवन से सम्बद्ध एवं मनोरञ्जन प्रधान होती है । (1) नीतिकथा - पञ्चतन्त्र नीति कथाओं का कलात्मक सङ्कलन है । इसके लेखक विष्णु शम हैं, वे महिलारोप्य के राजा अमरशक्ति के तीन मूर्ख पुत्रों को 6 माह में ही नीतिज्ञ, कलाकार एवं राजनीतिज्ञ बनाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हैं । इस ग्रन्थ में 5 तन्त्र (भाग) हैं - मित्रभेद, मित्र सम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश और अपरीक्षित कारक । प्रत्येक तन्त्र एक मुख्य कथा है जिसकी पुष्टि के लिए अनेक उपकथाएँ हैं । पञ्चतन्त्र का 50 से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो गया है । और इसके 200 से अधिक संस्करण मिलते हैं । 14वीं शती में लिखित "हितोपदेश" पञ्चतन्त्र पर आधारित नीति कथा ग्रन्थ है । इसके रचयिता नारायण पण्डित हैं । इसमें 43 में से 17 नई कथाएँ हैं, शेष कथाएँ पञ्चतन्त्र से की गई हैं । यह ग्रन्थ 4 खण्डों में लिखित है- मित्र लात्र, सुहृद्भेद, विग्रह और सन्धि । 44 (2) लोककथा - गुणाढ्य की "बृहत्कथा" लोककथा का सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ है किन्तु यह अपने मूल रूप में अप्राप्त है । इससे संबंधित अधोलिखित कथा ग्रन्थ हैं (1) बृहत्कथा मञ्जरी - इसके 19 अध्यायों में 7500 श्लोक हैं । 11वीं शती में इसकी रचना क्षेमेन्द्र ने की । (2) "बृहत्कथाश्लोक संग्रह " यह ग्रन्थ बुधस्वामी ने 28 सर्गों में लिखा है । इसमें 4539 पद्य हैं। इसमें नरवाहन दत्त के 26 विवाहों में से केवल दो की साहस पूर्ण कहानियाँ हैं । यह ग्रन्थ अपूर्ण उपलब्ध हुआ है। इसमें प्राकृत के प्रयोग भी हैं। कथासरित्सागर : सोमदेव कृत यह ग्रन्थ 11वीं शती का है। यह 18 खण्डों में विभक्त है । इसमें खंडों को 'लम्बक' " और उपखण्डों को "तरङ्ग" नाम दिया गया है । इसमें 124 तरङ्ग भी हैं तथा सम्पूर्ण ग्रन्थ में 21388 पद्य हैं। मानवता का सन्देश सम्पूर्ण रचना में प्राप्त होता है । इनके अतिरिक्त बृहत्कथा के दो तमिल संस्करण भी मिलते हैं।" बृहत्कथा पैशाची भाषा में निबद्ध नरवाहन दत्त के कथानक पर पराक्रमों, वैचित्यवृत्तों एवं परिहासपूर्ण घटनाओं का रमणीय महावन ( 7 लाख पद्य) हैं, सात वाहन द्वारा अस्वीकृत किये जाने पर गुडाष्यन अग्निकुण्ड में प्रत्येक पन्ना पढ़कर जला दिया, केवल 1 लाख पद्य बचा दिये गये थे ।2 परवर्ती साहित्यकार इस ग्रन्थ से अत्यधिक प्रभावित हुए एवं परवर्ती कथा साहित्य पर बृहत्कथा का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है । " बेतालपञ्चविंशतिका" अत्यन्त रोचक, पच्चीस कहानियों का संग्रह ग्रन्थ है । इसके दो संस्करण मिलते हैं एक शिवदास रचित एवं दूसरा जम्भलदत्त 74 कृत । इस कथा संग्रह का अनुवाद भारत की अधिकांश भाषाओं में हो गया है। "वेतालपञ्चविशंतिका” में एक वेताल द्वारा प्रकथित उज्जैन के राजा त्रिविक्रमसेन से बुद्धिवर्धक, प्रासङ्गिक पहेलीयुक्त 25 कहानियों के मार्मिक प्रश्नोत्तर उपस्थित हुए I इसके पश्चात् ‘“सिंहासनहात्रिंशिका " कथा संग्रह भी विक्रमादित्य के पराक्रम, न्याय, उदारता आदि गुणों से ओत-प्रोत है। इस कथा संग्रह की कहानियों के लेखक का नाम और समय अज्ञात है । इसके तीन संस्करण मिलते हैं । इस कथा संग्रह का अब भाषाओं में अनुवाद हो चुका है । " शुकसप्तति" भी अतीव रोचक कहानी संग्रह है । इसमें सत्तर कथाएँ हैं, जो एक तोता द्वारा मदनसेन की पत्नी को व्याभिचारिणी होने से रोकने के लिए कही गयी हैं - इसमें स्त्री चरित्र, कपटाचरण, परपुरुषगमन आदि का विवेचन है । इस ग्रन्थ दो संस्करण उपलब्ध हैं- विस्तृत संस्करण चिन्तामणि द्वारा विरचित तथा संक्षिप्त संस्करण श्वेताम्बर जैन लेखक द्वारा विरचित ।
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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