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________________ 293 छन्द में प्रशस्त स्तवन कर. "मुक्ताहारः" सोऽयं विज्ञ पुरुषाणां कण्ठे विराजताम् नित्यम्" के द्वारा भी विज्ञ पुरुषों के कण्ठ में यह मुक्ताहार मोतियों से गुम्फित हार की तरह सुशोभित हो, ऐसी मङ्गलकामना के साथ इसकी समाप्ति की है । प्रसादगुण और वैदर्भी रीति में निबद्ध यह काव्य गुच्छक प्रत्येक सुहृदय पाठक और श्रोता के चित्त को द्रवीभूत कर देता है । (७) वृत्तहार "वृत्तहार" - शीर्षक रचना 32 पद्यों में निबद्ध है । ये पद्य जिन छन्दों में रचे गये हैं । उनके नाम उन्हीं पद्यों में दिये गये हैं। सभी छन्दों का नाम प्रतिपाद्य विषय से जुड़ा हुआ है - यही इस रचना का चमत्कार है । छन्दों से सम्गुफित हार गुरुणां गुरुः पंडित प्रवर गोपालदास जी बरैया को समर्पित किया गया है । तीस प्रकार के छन्दों में निबद्ध यह रचना पं. जी के छन्दशास्त्र पर उत्कृष्ट ज्ञान की निदर्शक है । (8) महावीर स्तोत्रम् (9) महावीर स्तवनम् (10) बाहुबल्यष्टकम् (11) आ. शान्तिसागर स्तुतिः (12) आ. धर्मसागर वन्दना (13) आ. विद्यासागराष्टकम् (14) आ. देशभृाण वन्दना प्रभृति स्फुट रचनाएँ पण्डित जी के अद्वितीय काव्यकौशल और प्रशस्त रचनाधर्मिता की जीवन्त प्रतीक हैं । संस्कृत भाषा में इतना अधिक मौलिक लेखन बीसवीं शताब्दी में करके पण्डित जी ने काव्य साहित्य की सभी विधाओं को अपनी लेखनी से अभिमंडित किया है । उनकी रचनाओं में अध्यात्म, दर्शन, साहित्य, काव्य, काव्यशास्त्र और छद्रोशास्त्र आदि फलीभूत हो रहे हैं । उनकी कृतियों में कालिदास, भारवि, माघ, जिनसेन, सोमदेवसूरी, आशाधर, श्री हर्ष का प्रभाव अङ्कित है । वे राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार है । उनके काव्यों का मूल्यांकन काव्यशास्त्र, भाषाशास्त्र के निकष पर करने से हमें ज्ञात होता है कि साहित्याचार्य जी के ग्रन्थ बीसवीं शताब्दी के वास्तविक प्रतिनिधि ग्रन्थ हैं । उनके कृतित्व को अनेकशः राष्ट्रीय, एवं प्रादेशिक शासन द्वारा तो सम्मानित और पुरस्कृत तो किया ही गया है, राष्ट्र की अनेक अखिल भारतीय संस्थाओं के द्वारा भी उन्हें सम्मानित और पुरस्कृत किया है। साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन को अन्तर राष्ट्रीय पुरस्कार अहिंसा परक साहित्य सम्वर्द्धन हेतु 1990 में अर्पित किया गया है । उनका बहु आयामी साहित्य, संस्कृति, समाज और राष्ट्र सेवा के उपलक्ष्य में उनका अखिल भारतीय अभिनन्दन 1990 में सम्पन्न हुआ और इस अवसर पर उन्हें 862 पृष्ठ का एक विशाल अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया गया, जिसमें उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर सांगोपांग विश्लेषण है । ६. पं. मूलचन्द्र शास्त्री के काव्य वचनदूतम् - पं. मूलचन्द्र जी शास्त्री के द्वारा प्रणीत "वचनदूतम्" प्रणय-भावना के उदय के अनन्तर गिरनार पर्वत पर अविचल नेमिनाथ के प्रति वाग्दत्ता राजीमती (राजुल) की मानवीय अनुभूति का काव्य है । मेघदूत के यक्ष ने जिस प्रकार मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रियतमा यक्षिणी के पास अपना सन्देश भेजा है, उसी प्रकार "वचनदूतम्" में भी राजसुता
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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