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________________ 189 सम-सामयिकता का प्रतिबिम्ब और अङ्कन इन रचनाओं में पर्याप्त मात्रा में निदर्शित है । इन रचनाओं का साहित्यिक एवं शैली गत अध्ययन अग्रिम पञ्चम अध्याय में किया गया है । 1. 2. 3456 4. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 22224 21. फुट नोट साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, खंड 2, आत्म कथ्य पृ. 2/1 4 सम्यक्त्व - चिन्तामणि- प्रकाशक- वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी-5 प्रथम संस्करण1983 ई. जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, सम्वर, निर्जरा और मोक्ष ये 7 तत्त्व हैं । जीव के दो भेद हैं- संसारी और मुक्त । संसारी जीव के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव ये 5 परावर्तन हैं । मिथ्या दृष्टि, सासन, मिश्र, असंयत सम्यग्दृष्टि, देशव्रती, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मलोभ, शान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगजिन, अयोगंजिन 14 गुणस्थान हैं । गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व. संज्ञित्व और आहारक ये 14 मार्गणाएँ हैं । जीव,पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये 6 द्रव्य हैं । गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषहजय, चारित्र और तप सम्वर के कारण हैं। वीरसेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी से प्रकाशित हुआ है । सम्यक्त्व चिन्तामणि प्रथम मयूख : पद्य 16 पृष्ठ 4 सम्यक्त्व चिन्तामणि विस्तृत विवरण के लिए 143 से 146 तक | पृष्ठ 23 ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर इन 8 बातों को लेकर मिथ्यादृष्टि मानव अहंकार करते हैं, ये ही आठ मद कहे गये हैं । कुदेव, कुगुरु, कुधर्म, कुकर्मों का सेवक, दोष स्थान, अस्थान ये 6 अनायतन हैं। लोकमूढ़ता गुरुमूढ़ता, देवमूढ़ता । - - प्रथम मयूख : अनुवाद, श्लोक संशय, काक्षा, विचिकित्सा, मूढदृष्टि, अनुपमूहन, अस्थितिकरण, अवात्सल्य, अप्रभावना से 8 दोष कहे गये हैं । सम्यक्त्व चिन्तामणि - द्वितीय मयूख, पद्य 12, पृष्ठ 55 सम्यक्त्व चिन्तामणि द्वितीय मयूख, पद्य 26, पृष्ठ 59 नारकियों की 7 भूमियाँ ये हैं- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, महातमः प्रभा । भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत । ये सात क्षेत्र जम्बूद्वीप में क्रम से स्थित हैं 1 हिमवान् महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये 6 पर्वत (कुलाचल) हैं। पद्म, महापद्म, तिगिच्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये 6 सरोवर क्रम से उपरोक्त पर्वतों पर स्थित हैं ।
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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