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सम-सामयिकता का प्रतिबिम्ब और अङ्कन इन रचनाओं में पर्याप्त मात्रा में निदर्शित है । इन रचनाओं का साहित्यिक एवं शैली गत अध्ययन अग्रिम पञ्चम अध्याय में किया गया है ।
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फुट
नोट
साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, खंड 2, आत्म कथ्य पृ. 2/1
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सम्यक्त्व - चिन्तामणि- प्रकाशक- वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी-5 प्रथम संस्करण1983 ई.
जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, सम्वर, निर्जरा और मोक्ष ये 7 तत्त्व हैं । जीव के दो भेद हैं- संसारी और मुक्त ।
संसारी जीव के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव ये 5 परावर्तन हैं । मिथ्या दृष्टि, सासन, मिश्र, असंयत सम्यग्दृष्टि, देशव्रती, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मलोभ, शान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगजिन, अयोगंजिन
14 गुणस्थान हैं ।
गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व. संज्ञित्व और आहारक ये 14 मार्गणाएँ हैं ।
जीव,पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये 6 द्रव्य हैं ।
गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषहजय, चारित्र और तप सम्वर के कारण हैं। वीरसेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी से प्रकाशित हुआ है ।
सम्यक्त्व चिन्तामणि
प्रथम मयूख : पद्य 16 पृष्ठ 4
सम्यक्त्व चिन्तामणि
विस्तृत विवरण के लिए
143 से 146 तक | पृष्ठ 23
ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर इन 8 बातों को लेकर मिथ्यादृष्टि मानव अहंकार करते हैं, ये ही आठ मद कहे गये हैं ।
कुदेव, कुगुरु, कुधर्म, कुकर्मों का सेवक, दोष स्थान, अस्थान ये 6 अनायतन हैं। लोकमूढ़ता गुरुमूढ़ता, देवमूढ़ता ।
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प्रथम मयूख : अनुवाद, श्लोक
संशय, काक्षा, विचिकित्सा, मूढदृष्टि, अनुपमूहन, अस्थितिकरण, अवात्सल्य, अप्रभावना से 8 दोष कहे गये हैं ।
सम्यक्त्व चिन्तामणि - द्वितीय मयूख, पद्य 12, पृष्ठ 55
सम्यक्त्व चिन्तामणि द्वितीय मयूख, पद्य 26, पृष्ठ 59
नारकियों की 7 भूमियाँ ये हैं- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, महातमः प्रभा ।
भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत । ये सात क्षेत्र जम्बूद्वीप में क्रम से स्थित हैं
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हिमवान् महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये 6 पर्वत (कुलाचल) हैं। पद्म, महापद्म, तिगिच्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये 6 सरोवर क्रम से उपरोक्त पर्वतों पर स्थित हैं ।