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कवि ने कैवल्य प्राप्ति का रहस्य और महत्त्व एक साथ दर्शाया है। कैवल्य की प्राप्ति घाति-कर्म-ज्ञानवरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय के नष्ट होने पर होती है तथा इसके होने पर ही तीर्थङ्कर उपदेश देते हैं। वर्द्धमान इन कर्मों का नाश कर केवली हुए और उन्होंने धर्म-ज्ञान से शून्य लोगों को धर्म का स्वरूप समझाया
घातिकर्माणिसंहत्य कैवल्यं समवाप्य च 1 धार्मिक ज्ञानरिक्तेभ्यो नृभ्यो बोधमसावदात् ॥17-14॥
तीर्थङ्कर वर्द्धमान ने पावापुरी में मुक्ति प्राप्त की थी । देवों, मनुष्यों और राजाओं ने पावापुरी में भक्ति भाव से असंख्य दीप जलाकर प्रकाश किया था । श्री शास्त्री जी ने वर्द्धमान को सर्वसुखाकर कहते हुए लिखा है -
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वीरे
सर्वसुखाकरे
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भगवति प्रध्वस्तकर्मोदये, मुक्तिश्री निलयाधिपे सतिसुरेरिन्द्रैस्तथा मानवैः । भूपैश्चादि जय प्रघोषकलितैरागत्य पावापुरीं, तत्रासंख्यसुदीपदीपकगणः प्रज्वालितो भक्तितः ॥18 - 52 |
प्रस्तुत काव्य को श्री गङ्गाधर भट्ट निर्देशक राय बहादुर चम्पालाल प्राच्य शोध संस्थान, जयपुर ने प्राञ्जल एवं सुपरिष्कृत काव्य शैली में विरचित वर्तमान युग का एक सुन्दर चम्पू काव्य कहा है । उन्होंने लिखा है कि यह काव्य प्रसाद गुण से आकण्ठ पूरित है । अलङ्का का प्रयोग प्रचुरता से किया गया है। मार्मिक स्थलों पर उपयुक्त रस की अभिव्यक्ति सहज रूप से प्रस्फुटित हुई हैं। वैशाली की समृद्धि का वर्णन करते हुए कवि ने वहाँ के राजप्रसादों के वैभव, उनकी विशालता, वहाँ रहने वाली नारियों के अनुपम अङ्ग लावण्य आदि का मनोरम चित्रण किया है । भाषा प्रवाहमयी है । कवि का मुख्य लक्ष्य प्राचीन कथा का सहज सरस और साहित्यिक भाषा में वर्णन करना है, जिसकी इस काव्य में पर्याप्त पूरि हुई हैं। समाज में यह धारणा दृढमूल होती है कि वार्धक्य काल में कविगण मतिभ्रम से ग्रस्त हो जाते है किन्तु कवि की बुद्धि विलक्षणता एवं विचक्षणता उसका सुखद अपवाद है
कवि ने वर्द्धमान के महावीर, वीर, अतिवीर और सन्मति नामों का एक ही श्लोक बड़ी ही सुघड़ता से उल्लेख करते हुए स्याद्वाद न्याय के कर्त्ता के रूप में उन्हें नमन किया
है
वर्धमानं
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महावीरं वीरं स्याद्वादन्यायवक्तारमतिवीरं
सन्मतिदायकम् ।
नमाम्यहम् ॥3-1॥
वर्धमान चम्पू में अङ्कित पं. मूलचन्द्र शास्त्री का छन्द बद्ध जीवन परिचय : " वर्धमान चम्पू" में महावीर स्वामी के जीवन चरित के पश्चात् काव्य प्रणेता पं. मूलचन्द्र शास्त्री ने अपना परिचय छन्दबद्ध करके प्रस्तुत किया है । तदनुसार विक्रम संवत् 1960 अगहन वदी अष्टमी तिथि को सागर जिले के मालथोंन ग्राम में आपका जन्म हुआ। जैन धर्म के प्रेमी परिवार में उत्पन्न श्री सटोले लाल आपके पिता और श्रीमती सल्लोदेवी माता थी। इस विषय में शास्त्री जी ने स्वयं लिखा है
मालथोनेति
सागरंमण्डलाधीनो संज्ञकः । ग्रामो जनधनाकीर्णः सोऽस्ति मे जन्मभूरिति ॥1॥ "सल्लो" माता पिता मे श्री सटोलेलाल नामकः । जिनधर्मानुरागी स परवार कुलोद्भवः ॥2॥