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80. स्वपर भेद विषयक पदार्थों का विवेक करने वाला आत्मा विज्ञान ज्योति है । 81. कर्मों को नष्ट करने पर आत्मा स्वयं सिद्ध है । 82. आत्मा मोक्ष का स्वामी होने के कारण स्वराज्यकर्ता है ।
मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि के कारण कृतार्थी कहा है । 84. आत्मचिन्तनपूर्वक अनन्त आनन्द प्राप्त करता है । 85. इन्द्रिय दमन के कारण दमीश्वर 86. चुपचाप चिन्तन मग्न रहने के कारण मोनी
सभी निधियों का स्वामी होने से यह धनेश कहलाता है । 88. तीनों लोकों का स्वामी होने से यह नरेश है ।
शांतिसुधासिन्धु 5/520/426 श्रावक धर्म प्रदीप, आ. कुन्थुसागर, प्रकाशक, श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थ माला 1, 2 भदैनीघाट, बनारस वी. नि. सं. 2481 शंका,कांक्षा, विचिकित्सा, मूढ़दृष्टि, अनुपगूहन, अस्थितीकरण, अवात्सल्य, अप्रभावना. विद्या का मद, प्रतिष्ठा का मद, कुल का मद, जाति का मद, बल का मद, धन
का मद, सुन्दरता का मद, तपस्या का मद । 93. कुदेव और उसका सेवक, कुशास्त्र और उसका पाठक, कुगुरू और उसका सेवक
लोकमुढ़ता, देवमूढ़ता, गुरुमूढ़ता 95. लोकभय, परलोकभय, वेदुनाभय, मरणभय, अरक्षाभय, अगुप्तिभय और अकस्माद्भय।
संवेग, निर्वेग, उपशम, स्वनिन्दा, गर्हा, अनुकम्पा, आस्तिक्य, वात्सल्य। 97.. शङ्कातिचार, काडक्षातिचार, विचिकित्सा अतिचार, प्रशंसा अतिचार और संस्तव
अतिचार। 98. श्रावक धर्म प्रदीप 3 पृष्ठ 80 । 99. हिंसा, असत्य, चौर्य कामवासना, परिग्रह पञ्चपाप है। 100. अहिंसा, सत्य, अचौर्य, स्वदारसंतोष (ब्रह्मचर्य) अपरिग्रह, पञ्चाणुव्रत है । 101. मद्य त्याग, मांस त्याग, मधु त्याग, बड़, पीपल, पाकर अमर, कठमूर फलों का त्याग। 102. पञ्चाम्बु त्याग अतिचार, मांस त्याग अतिचार, मद्य त्याग अतिचार मधु त्याग अतिचार। 103. जुआ त्याग अतिचार, वैश्या त्याग अतिचार, चौर्य त्याग अतिचार, शिकार त्याग अतिचार,
परस्त्री सेवन त्याग अतिचार, मद्य त्याग अतिचार, मांस त्याग अतिचार 104. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष । 105. क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य, ब्रह्मचर्य ये दस
धर्म हैं । 106. अनित्यभावना, अशरण भावना, संसार भावना, अन्यत्व भावना, एकत्व भावना, अशुचि
भावना, आश्रव भावना, संवर भावना, निर्जरा भावना, बोधिदुर्लभ भावना, लोक भावना
और धर्मानुप्रेक्षा । 107. प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग । 108. अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, परस्त्रीसेवन त्यागव्रत और परिग्रह परिमाण
व्रत
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