________________
-84 ___जिम पोशा वारप्पा माननाओं से तीर्थंकर प्रकृत्ति का बन्ध होता है, उनका उल्लेख जैम दमि के म्पूर्धन्य आच्याी उछम्माम्याम्मी महाराज ने तत्त्वार्थ सूत्र में किया है -
"टनिनिन्दिन्किय्यास्साम्प्यन्तत्याशील्लव्रतेष्वनतीच्यासोऽम्मीदप्याज्ञानोप्पय्योग्यासाव्याशाबित्तत्तस्त्यागसप्पसंतीस्समापुरसम्माध्धिब्बैय्यावृत्त्व्यकरणार्महदाचार्य । बहुता-पायाच्यन्नामानितारावाश्य्यकापारिहाणिमार्ग प्रश्माब्यमा प्रयच्छन्सव्यत्सल्सल्दिाम्मित्ति तीर्थंकरत्वस्य ।
उपर्युमन्त षोडशा कारप्पा माच्याओं के सतत चिन्तन से तीर्थकरत्व की प्राप्ति संभव है । प्रस्तुल एच्यसा में आध्यात्म्पिक काळ्या का आवाव्या लेकर आचार्य श्री इन्हीं सोलह भावनाओं का माळ्यात्मक सिमप्पा किया है ॥ किन्तु आचार्य श्री कहीं-कहीं नाम परिवर्तित भी किये हैं सालककार मारणा निर्दिष्ट स्मायामाओं के नाम इस प्रकार हैं - निर्मल दृष्टि, विनयावनति, स्थाशीलासा, सिएन्सर झालोपयोग्णा,, सॉोग्णा, त्यागावृत्ति सन्तप्पा, साधु समाधि सुधा साधन, वैयावृत्य,
अर्हमबिस्त, आल्यार्थी स्तुति, शिक्षा गारू स्तुत्ति, मागावत्त भारत्ती भक्ति, विमलावश्यक, धर्म-प्रभावना | और यात्मतासा ॥
मांचासासालकम्म कै च्यसुर्घप्पा स्पो व्याह तथ्या स्पष्ट होता है कि ज्ञान के द्वारा काम का माशा करने, पारम्मात्म्म के प्रति मामिला मात्र त्तच्या भाव्य जीवों के हृदयों में उक्त भावनाओं के चिन्तकास की अम्पिारच्चि ज्वापास करने एवं पाप्पाक्षाय जैस्से महनीय उद्देश्यों को लेकर ही इस कृत्ति का प्रयायाम किव्या माथ्या है ॥
- अनुस्मीताल - "दीन्स दिवाशुद्धि"" म्मुम्मुक्षु सायक के लिए मुक्ति का प्रवेश द्वार है। शुद्ध दीस दर्पप्पा के सामान्माच्छ होता है उस्से "साम्यग्दर्शन"" भी कहते हैं। करणादि भाव चन्द्रक्रान्ति के स्साम्मास ऊज्याला हैं ॥ श्मोग्णादि समत्पाध्य पार अग्रसर होनो में अवरोधक हैं।
मोह रूपी तान्नु को मष्ट करने वाल्ले, संयमी, प्पश्म तपस्वी, दिव्यालोक प्रदान करते
% a
हैं
la
"चिसयालीलाला'' स्से म्मान का मार्दन्न होता है, आत्मा की विशुद्धि के लिए विनयावनति पाएम्मावाश्यक है ॥ योगी और 'चिल्खान्म समभी इसका आश्रय लेते हैं - अविनयी संसार सागर में डूब्ब जाले हैं।
कामाम्मथ्य स्ॉस्साए दुःसख्य स्से परिपूर्ण है | इसका परित्याग करने वाला सिद्ध योगी होता । है और मोक्षगामी होला है ॥ निरन्तर ज्ञान्नोपयोगा पर बल्ल देते हुए कहते हैं मेरा मन ज्ञानयुक्त हो झासोपोग्गा म्पोरया म्मिन्म जन जालो झपारसे प्पीड़ा का अन्त हो जायेगा-ज्ञान दीप की महत्ता
ज्ञानरूलप्पी करे दीप्पोऽमन्तोऽचलते यत्तेऽस्तव ।
सन्तररूपी हरेऽष्पाप्नो जिन्नोऽवलोक्यत्ते-स्वयम् I साँचेगा दुरति कर्मा प्रमाणालियों को नष्ट करता है सांस्मारिक बन्धनों को हटाता है- संवेग स्मै स्माम्यस्त्व्य स्मुशोम्मिल होता है ॥ दुःखों से छुटकारा पाने के लिए त्याग भावना अनिवार्य । है । इसीलिए मैं भी शीलस्याग्गी होकर मन्न को संयाम्मित रखता हूँ तथा सत्य के रहस्य का
याकोशी हूँ ॥