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________________ पुद्गल तत्त्व और परमाणु पुद्गल को भी अस्तिकाय द्रव्य एवं तत्त्व माना गया है। यह मूर्त और अचेतन तत्त्व है। पुद्गल का लक्षण शब्द, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि माना जाता है। इसके अतिरिक्त, जैन आचार्यों ने हल्कापन, भारीपन, प्रकाश, अंधकार, छाया, आतप, शब्द, बन्ध-सामर्थ्य, सूक्ष्मतत्व, स्थूलत्व, संस्थान, भेद आदि को भी पुद्गल का लक्षण माना है। (उत्तराध्ययन 28/127 एवं तत्त्वार्थ-5/23-24)। जहाँ धर्म, अधर्म और आकाश एक द्रव्य माने गये हैं, वहाँ पुद्गल अनेक द्रव्य हैं। जैन आचार्यों ने प्रत्येक परमाणु को एक स्वतन्त्र द्रव्य या इकाई माना है। वस्तुतः यह पुद्गल द्रव्य समस्त दृश्य जगत् का मूलभूत घटक है। ज्ञातव्य है कि बौद्धदर्शन में और भगवती जैसे आगमों के प्राचीन अंशों में पुद्गल शब्द का प्रयोग जीव या चेतन तत्त्व के लिए भी हुआ है, किन्तु इसे पौद्गलिक शरीर की अपेक्षा से ही जानना चाहिए। यद्यपि बौद्ध-परम्परा में तो पुद्गल-प्रज्ञप्ति (पुग्गल पञति) नामक एक ग्रन्थ ही है, जो जीव के प्रकारों आदि की चर्चा करता है, फिर भी जीवों के लिए पुद्गल शब्द का प्रयोग मुख्यतः शरीर की अपेक्षा से ही देखा जाता है। परवर्ती जैन दार्शनिकों ने तो पुद्गल शब्द का प्रयोग स्पष्टतः भौतिक तत्त्व के लिए ही किया है और उसे ही दृश्य जगत् का कारण माना है, क्योंकि जैन-दर्शन में पुद्गल ही ऐसा तत्त्व है, जिसे मूर्त या इन्द्रियों की अनुभूति का विषय कहा गया है। वस्तुतः पुद्गल के उपरोक्त गुण ही उसे हमारी इन्द्रियों की अनुभूति का विषय बनाते हैं। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जैन-दर्शन में प्राणीय-शरीर, यहाँ तक कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वनस्पति का शरीर-रूप दृश्य स्वरूप भी पुद्गल का ही निर्मित है। विश्व में जो कुछ भी मूर्तिमान या इन्द्रिय-अनुभूति का विषय है, वह सब पुद्गल का खेल है। इस सम्बन्ध में विशेष ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि जहाँ जैन-दर्शन में पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु-इन चारों को शरीर अपेक्षा पुद्गलरूप मानने के कारण इनमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण- ये चारों गुण माने गये हैं। जबकि वैशेषिक आदि दर्शन मात्र पृथ्वी को ही उपर्युक्त चारों वणों से युक्त मानते हैं। वे जैन तत्त्वदर्शन 85
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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