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________________ 100. जैन संस्कार और विधि विधान, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 101. उपदेश पुष्पमाला, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 102. सुकरत्नावली, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 103. ऋषिभाषित : एक दार्शनिक अध्ययन, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 104. जैन विधि विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 105. बौद्ध दर्शन का समीक्षात्मक अध्ययन, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 106. उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 107. जैनधर्म में आराधना का स्वरूप, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 108. अध्यात्मसार (हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या सहित), प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 109. अनूभूति और दर्शन, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 110. सर्वसिद्धान्त प्रवेशक, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 111. विद्याचन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दीग्रन्थ, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर इनके अतिरिक्त, प्रो. सागरमल जैन की जो 43 कृतियाँ हैं, उनका सम्पादन भी उन्होंने स्वयं किया है। इस प्रकार उनके सम्पादित ग्रन्थ 155 से भी अधिक हैं। साथ ही, आप Encycleapedia of Jaina Studies, जो सात खण्डों में प्रकाशित हो रहा है और जिसका प्रथम खण्ड प्रकाशित हो चुका है, के भी सम्पादक हैं। प्रो. सागरमल जैन द्वारा संस्थापित प्राच्य विद्यापीठ स्थापना एवं उद्देश्य : ____ मालव ज्योति पूज्या श्री वल्लभकुँवरजी म.सा. साध्वीवर्या पूज्या श्रीपानकुँवरजी म.सा. (दादाजी) की पुण्य स्मृति में एवं मरुधरमणि साध्वी पूज्या श्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा. एवं साध्वीवर्या पूज्या श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. की प्रेरणा से भारतीय प्राच्य विद्याओं (विशेष रुप से जैन और बौद्ध परम्पराओं) के उच्च स्तरीय अध्ययन, शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शोधकार्य के साथ-साथ उच्चस्तरीय अध्ययन, शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शोधकार्य के साथ-साथ भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने के पुनीत उद्देश्य को लेकर-दर्शनशास्त्र के आचार्य, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के भूतपूर्व निदेशक, जैन बौद्ध और हिन्दू धर्म एवं दर्शन, कला एवं संस्कृति, साहित्य और इतिहास एवं पुरातत्व के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मूर्धन्य विद्वान डॉ. सागरमलजी जैन ने वाराणसी से प्रत्यागमन के पश्चात् वर्ष 1997 में अपने गृहनगर शाजापुर में प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना की, जिसे वर्ष 2000 में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन (म.प्र.) द्वारा शोध संस्थान के रुप में मान्यता प्रदान की गई। जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान 702
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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