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126. महावीर के सिद्धान्तः आधुनिक संदर्भ में, महावीर जयन्ती स्मारिका, जयपुर 1976 127. मूलाचारः एक विवेचन (211734), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 128. मूल्य बोध की सापेक्षता, दार्शनिक त्रैमासिक, अक्टूबर 1977 129. मूल्य दर्शन और पुरुषार्थ चतुष्टय (211738), सागरमल जैन अभिनन्दन
ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 130. रामपुत्त या रामगुप्तः सूत्रकृतांग के संदर्भ में (211845), सागरमल जैन
अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी। 131. व्यक्ति और समाज, सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 132. श्रमण एवं वैदिक धारा का विकास एवं पारस्परिक प्रभाव (2122025),
सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 133. श्रावक आचार (धर्म) की प्रासंगिकता का प्रश्न (212054), सागरमल जैन
अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 134. श्वेताम्बर परम्परा में रामकथा (212077), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ,
पा.वि. वाराणसी 135. श्वेताम्बर साहित्य में राककथा का स्वरूप, श्रवण, अक्टूबर 1985 136. श्वेताम्बर मूलसंघ एवं माथुरसंघ : एक विमर्श (212078), सागरमल जैन
अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 137. षट्जीवनिकाय के वर्गीकरण की समस्या (212082), सागरमल जैन अभिनन्दन
ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 138. संयम जीवन का सम्यक् दृष्टिकोण, श्रमण, जुलाई 1980 139. सत्ता कितनी वाच्य और कितनी अवाच्य, दार्शनिक त्रैमासिक, अप्रैल 1981 140. स्याद्वाद : एक चिंतन, महावीर जयन्ती स्मारिका, 1977 141. सती प्रथा और जैन धर्म (212116), कुसुमवती साध्वी अभिनन्दन ग्रन्थ 142. सदाचार के शाश्वत मानदण्ड और जैन धर्म (212124), जैन दिवाकर स्मृति
ग्रन्थ 143. सप्तभंगी त्रिमूल्यात्मक तर्क शास्त्र के सन्दर्भ में, महावीर जयन्ती स्मारिक,
जयपुर 1977 144. समदर्शी आचार्य हरिभद्र (212138), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 145. समाधिमरण की अवधारणा की समीक्षा, सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.
वि. वाराणसी
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान